हिंदू धर्म का मूल स्रोत वेद
हिंदू धर्म का मूल स्रोत वेद है | उसके बाद उपवेद , फिर वेद के अंग तथा उपांग | इनमे वेद के दो भाग है – एक मन्त्रभाग दूसरा ब्राह्मणभाग | मंत्रभाग मे संहिताए होती है और ब्राह्मणभाग मे ब्राह्मणग्रन्थ , आरण्यक तथा उपनिषदे |
मंत्र भागात्मक वेद के चार भेद है – (१) ऋक (२) यजु (३) साम (४) अथर्व |
इन चारो की ११३१ संहिताए होती है | इनमे ऋग्वेद की २१ संहिताए होती है , जिनमे आजकल “बाष्कल” और “शाकल” ये दो संहिताए मिलती है |
“बाष्कल” मे अष्टक, आध्यायिक क्रम है और शाकल मे मण्डल, अनुवाक आदि | शेष संहिताए लुप्त है |
यजुर्वेद की १८१ संहिताए है | यजुर्वेद के दो भेद माने जाते है – (१) शुक्ल और (२) कृष्ण |
इनमे शुक्ल यजुर्वेद की १५ संहिताए है, उनमे केवल दो संहिताए मिलती है - (१) वाजसनेयी और
(२) काण्व | शेष लुप्त है | कृष्ण यजुर्वेद कि ८६ संहिताए होती है | इनमे से चार मिली है – (१) तैत्तिरीय संहिता (२) मैत्रायणी (३) काठक (४) कठकपिष्ठल | शेष लुप्त है |
सामवेद की १००० संहिताए है | उनमे आजकल २ मिली है – (१) कौथुम और (२) जैमिनी | कुछ भाग राणायनीय संहिता का भी मिलता है | अथर्ववेद की ९ संहिताए है, इनमे आजतक दो मिली है – (१) शौनक और (२) पैप्पलाद | यह सब मंत्रभाग है |
मंत्रभाग की जितनी संहिताए होती है , ब्राह्मण भाग भी उतना ही होता है , क्योकि शब्द और अर्थ का सम्बन्ध हुआ करता है | अतः आरण्यक और उपनिषदे भी उतनी ही होती है | श्रौतसूत्र भी उतने ही तथा गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और प्रातिशाख्य भी उतने ही होते है | ब्राह्मण भाग मे ऋग्वेद के “ऐतरेय“ और कौशीतक यह दो ब्राह्मण मिलते है | “ऐतरेयोपनिषद” आदि १० उपनिषदे मिलती है | इनमे गवेशणीय है की किस संहिता का कौन सा ब्राम्हण है | ऐतरेय और कौशीतक दो आख्यक मिलते है |
आश्वलायन और शान्ख्यान दो यह श्रौतसूत्र तथा इसी नाम के दो गृह्यसूत्र है | इसका ऋक्प्रातिशाख्य भी होता है | यजुर्वेद मे शुक्ल यजुर्वेद के माध्यन्दिन “शतपथ ब्राह्मण” और “कण्व शतपथ” यह दो ब्राह्मण मिलते है | कण्वसंहिता का बृहदारण्यक यह आरण्यक मिलता है । कात्यायन नामक श्रौतसूत्र और पारस्कर गृह्यसूत्र मिलता है । शुक्लयजुः प्रातिशाख्य तथ ईश, बृहदारण्यक, जाबल, मुक्तिका आदि उपनिशदे मिलती है ।
कृष्ण्यजुर्वेद का तैत्तिरीय ब्राह्मण तथा आरण्यक मिलता है । सत्याषाढ, हिरण्यकेशी, बौधायन आदि सात श्रौतसूत्र तथा आपस्तम्भ, मानव आदि सात गृह्यसूत्र और बोधायन, आपस्तम्ब ये दो धर्मसूत्र मिलते है । मनुस्मृति धर्मशास्त्र मिलता है । और तैत्तिरीय प्रातिशाख्य भी । कठ, तैत्तिरीय, श्वेताशवर आदि ३२ उपनिशदे मिलती है।
सामवेद के ताण्दय, षड्विन्श, मन्त्र-ब्राह्मण आदि ९ ब्राह्मण है । आरण्यक पृथक नही मिलता । केनोपनिषद, छान्दोग्य आदि १६ उपनिशदे है । द्राह्ययण, लट्यायन, मशकसूत्र आदि ३ श्रौतसूत्र तथा गोभिल, खादिर और जैमिनीय यह ३ गृह्यसूत्र है । धर्मसूत्र नही मिलते है । सामप्रातिशाख्य मिलता है ।
अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण मिलता है । यह पैप्पलाद संहिता का है । अन्य लुप्त है । आरण्यक नही मिलता । प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य आदि ३१ उपनिशदे है । वैखानस, एवं वाराह गृह्यसूत्र मिलते है । धर्मसूत्र नही मिलता । अथर्व प्रातिशाख्य मिलता है ।
उपवेद और अंग
जैसे वेद ४ प्रकार का होता है, वैसे उपवेद भी - (१) आयुर्वेद (२)धनुर्वेद (३) गान्धर्ववेद (४)अर्थवेद
आयुर्वेद क सम्बन्ध अथर्ववेद से , गान्धर्ववेद का सामवेद से , धनुर्वेद का यजुर्वेद से और अर्थवेद का ऋग्वेद से होता है । आयुर्वेदादि की भी बहुत सी संहिताये है , जैसेः सुश्रुत, चरक, भेल, काश्यप आदि ।
वेद के अंग छः होते है - (१) शिक्षा (२) कल्प (३) व्याकरण (४)निरुक्त (५) छन्द (६०) ज्योतिष ।
इनमे ऋग्वेद की पाणिनिशिक्षा, कृष्ण यजुर्वेद कि व्यासशिक्षा, शुक्लयजुर्वेद कि याज्ञवल्क्य आदि २५ शिक्षाये है ।सामवेद की (१) गौतमी (२) लोमशी और(३) नारदी शिक्षाये है। अथर्ववेद की माण्डुकी शिक्षा है । गृह्यसूत्र, श्रौतसूत्र आदि कल्प होते है ।उनका निरूपण पहले हो चुका है ।पृथक कल्प भी मिलते है । -(१) नक्षत्र कल्प (२) संहिताकल्प (३) आंगिरसकल्प (४) शान्तिकल्प (५) वैतानकल्प आदि ।
कल्प मे वेदमंत्रो
का विनियोग मिलता है | व्याकरण तथा प्रातिशाख्य भिन्न भिन्न वेदों के भिन्न भिन्न
हुआ करते थे| पाणिनि का व्याकरण यजुर्वेद से संबद्ध प्रतीत होता है | इस प्रकार
शाकल्य आदि से भी बहुत से व्याकरण मिलते
थे | इसी प्रकार निरुक्त भी भिन्न भिन्न संहिताओ के भिन्न भिन्न थे | यास्कका
निरुक्त ऋगवेद की वर्तमान से प्रचलित शाकल
संहिता का नहीं बल्कि अन्य संहिता का है ,
निरुक्त मे व्याख्यात ऋकमंत्रो का वर्तमान ऋग्वेदसंहिता से पूरा मेल नहीं दिखता |
शाकपूणी आदि भी निरुक्त थे जिनका नाम इस निरुक्त मे आता है |
छंद शास्त्र भी भिन्न भिन्न हो सकते है पिंगलादिमुनिप्रणीत छंदोग्रंथ कुछ मिलते भी है| उपनिदानसूत्र नामक सामवेद का छंदोग्रंथ उपलब्ध है | ज्योतिष के भी भृगुसंहिता, बृहत्संहिता, सूर्यसिद्धान्त, सिद्धान्तशिरोमणि आदि मिलते है, पर उनमे किसका किस वेदसंहिता से सम्बन्ध है ये पता नहीं लगता | यह वेद के अंग है |
वेद के उपांग चार है – (१) पुराण (२) न्याय (३) मीमांसा (४) धर्मशास्त्र
पुराण से पुराण , उपपुराण, औपपुरण, तंत्रशास्त्र , रामायण और महाभारत यह इतिहास गृहीत होते है |न्याय शब्द से न्याय, वैशेषिक , सांख्य, योग ये दर्शन गृहीत होते है |
मीमांसा से पूर्वमीमांसा (मीमांसादर्शन ), उनमे भी कर्ममीमांसा तथा दैवतमीमांसा और उत्तरमीमांसा (वेदांतदर्शन ) यह न्याय आदि छः दर्शन गृहीत होते है | धर्मशास्त्र से धर्मसूत्र तथा स्मृतिया गृहीत होती है|
इनमे प्रथम उपांग पुराण १८ होते है | (१) ब्रह्म (२) पद्म (३) विष्णु (४) शिव या वायु (५) लिंग (६) गरुड़ (७) नारद (८) भागवत (९) अग्नि (१०) स्कन्द (११) भविष्य (१२) ब्रह्मवैवर्त (१३) मार्कण्डेय (१४) वामन (१५) वाराह (१६) मत्स्य (१७) कूर्म (१८) ब्रह्माण्ड
वेद के उपांग पुराणों मे वेद के कठिन विषय (१) रामधिभाषा (२) परकीया व (३) लौकिकी भाषा एवं गाथा अदि से बहुत सरल कर दिए गए है | पुराण ज्ञान अनादि है , श्री वेदव्यास उनके संपादक एवं परिष्कारक है | रचना उनकी पौरुषेय है | पुराणों मे वेद “गागर मे सागर” की तरह समाये हुए है, उनमे वेद का सम्पूर्ण तत्व आ गया है |
उपपुराण भी १८ होते है – (१) आदि-पुराण (२) नरसिंह पुराण (३)स्कन्द पुराण (४) शिवधर्म पुराण (५)दुर्वासा पुराण (६) नारदीय पुराण (७) कपिल पुराण (८) वामन पुराण (९) महेश्वर पुराण (१०) औशनस पुराण (११) ब्रह्माण्ड पुराण (१२) वरुण पुराण (१३) कालिका पुराण (१४) साम्ब पुराण (१५) सौर पुराण (१६) पाराशर पुराण (१७) मारीच पुराण (१८) भास्कर पुराण
औपपुराण भी १८ होते है – (१) सनत्कुमार पुराण (२) बृहन्नारदीय पुराण (३) आदित्य पुराण (४) मानव पुराण (५) नन्दिकेश्वर पुराण (६) कौर्म पुराण (७) भागवत (८) वसिष्ठ (९) भार्गव (१०) मुद्गल (११) कल्कि पुराण (१२) देवी पुराण (१३) महाभागवत (१४) बृहद्धर्म (१५) परानंद (१६) पशुपति (१७) वाही (१८) हरिवंश
छंद शास्त्र भी भिन्न भिन्न हो सकते है पिंगलादिमुनिप्रणीत छंदोग्रंथ कुछ मिलते भी है| उपनिदानसूत्र नामक सामवेद का छंदोग्रंथ उपलब्ध है | ज्योतिष के भी भृगुसंहिता, बृहत्संहिता, सूर्यसिद्धान्त, सिद्धान्तशिरोमणि आदि मिलते है, पर उनमे किसका किस वेदसंहिता से सम्बन्ध है ये पता नहीं लगता | यह वेद के अंग है |
वेद के उपांग चार है – (१) पुराण (२) न्याय (३) मीमांसा (४) धर्मशास्त्र
पुराण से पुराण , उपपुराण, औपपुरण, तंत्रशास्त्र , रामायण और महाभारत यह इतिहास गृहीत होते है |न्याय शब्द से न्याय, वैशेषिक , सांख्य, योग ये दर्शन गृहीत होते है |
मीमांसा से पूर्वमीमांसा (मीमांसादर्शन ), उनमे भी कर्ममीमांसा तथा दैवतमीमांसा और उत्तरमीमांसा (वेदांतदर्शन ) यह न्याय आदि छः दर्शन गृहीत होते है | धर्मशास्त्र से धर्मसूत्र तथा स्मृतिया गृहीत होती है|
इनमे प्रथम उपांग पुराण १८ होते है | (१) ब्रह्म (२) पद्म (३) विष्णु (४) शिव या वायु (५) लिंग (६) गरुड़ (७) नारद (८) भागवत (९) अग्नि (१०) स्कन्द (११) भविष्य (१२) ब्रह्मवैवर्त (१३) मार्कण्डेय (१४) वामन (१५) वाराह (१६) मत्स्य (१७) कूर्म (१८) ब्रह्माण्ड
वेद के उपांग पुराणों मे वेद के कठिन विषय (१) रामधिभाषा (२) परकीया व (३) लौकिकी भाषा एवं गाथा अदि से बहुत सरल कर दिए गए है | पुराण ज्ञान अनादि है , श्री वेदव्यास उनके संपादक एवं परिष्कारक है | रचना उनकी पौरुषेय है | पुराणों मे वेद “गागर मे सागर” की तरह समाये हुए है, उनमे वेद का सम्पूर्ण तत्व आ गया है |
उपपुराण भी १८ होते है – (१) आदि-पुराण (२) नरसिंह पुराण (३)स्कन्द पुराण (४) शिवधर्म पुराण (५)दुर्वासा पुराण (६) नारदीय पुराण (७) कपिल पुराण (८) वामन पुराण (९) महेश्वर पुराण (१०) औशनस पुराण (११) ब्रह्माण्ड पुराण (१२) वरुण पुराण (१३) कालिका पुराण (१४) साम्ब पुराण (१५) सौर पुराण (१६) पाराशर पुराण (१७) मारीच पुराण (१८) भास्कर पुराण
औपपुराण भी १८ होते है – (१) सनत्कुमार पुराण (२) बृहन्नारदीय पुराण (३) आदित्य पुराण (४) मानव पुराण (५) नन्दिकेश्वर पुराण (६) कौर्म पुराण (७) भागवत (८) वसिष्ठ (९) भार्गव (१०) मुद्गल (११) कल्कि पुराण (१२) देवी पुराण (१३) महाभागवत (१४) बृहद्धर्म (१५) परानंद (१६) पशुपति (१७) वाही (१८) हरिवंश
पुराणों मे
तन्त्रग्रंथो का भी समावेश हो जाता है |तंत्रशास्त्र मे भी वेदों के विषय विभिन्न अधिकारियो के लिए बतलाये
गए है | इनमे आचार, उपासना, ज्ञान , मन्त्र, हठ, ले आदि योग, आयुर्वेद के
वाजीकरण आदि के गुप्त योग, भूतविद्या,
रसायन आदि सभी विद्याये और ज्योतिष के रहस्य स्पष्ट किये गए है|
तन्त्रो के परोक्षरूप से कहे गए कई तत्व अतिशयित गूढ़ है | परिभाषाये, मेरुमंत्र, महानिर्वाणतंत्र , आगमसार , हठयोग – प्रदीपिका आदि से जाने बिना वे अश्लील प्रतीत होते है | किन्तु उनकी परिभाषा जानने के बाद अत्यंत आनंद आता है| दत्तात्रे, कुलार्णव , कालीतंत्र आदि बहुत से तन्त्रग्रंथ होते है |
तन्त्रो के परोक्षरूप से कहे गए कई तत्व अतिशयित गूढ़ है | परिभाषाये, मेरुमंत्र, महानिर्वाणतंत्र , आगमसार , हठयोग – प्रदीपिका आदि से जाने बिना वे अश्लील प्रतीत होते है | किन्तु उनकी परिभाषा जानने के बाद अत्यंत आनंद आता है| दत्तात्रे, कुलार्णव , कालीतंत्र आदि बहुत से तन्त्रग्रंथ होते है |
वेद के उपांगो मे
दूसरा भाग इतिहास है | इनमे मुख्यतः रामायण, महाभारत लिए जाते है | इनमे रामायण
आदिकवि वाल्मीकि की आदिम मधुर रचना है | इसमे श्री राम अवतार का वर्णन है | इसकी
पद्य संख्या २६ हज़ार है | दूसरा है महाभारत ये १ लाख पद्यो का है | इसमे १८ पर्व
है | इसमे हिंदू धर्म के सभी विषय इतिहास द्वारा व्याख्यात कर दिए गए है |
वेद का तीसरा उपांग न्याय - मीमांसा होता है | इसमे ६ दर्शन आते है, यह हम पहले बता चुके है इनमे (१) सांख्य दर्शन श्री कपिल मुनि से प्रणीत है | इसमे प्रकृति – पुरुष का वर्णन है
(२) योग दर्शन – इसके कर्ता श्री पतंजलि मुनि है | इसपर व्यास भाष्य है | इसमे योग की ग्रंथिया सुलझाई गई है |
(३) वैशेषिक दर्शन – इसके प्रणेता श्री कणाद मुनि है ; प्रशस्तपाद का भाष्य है | इसमे संसार को ६ भागो मे विभक्त करके उसका विवरण किया गया है |
(४) न्याय दर्शन – उसमे १६ पदार्थो का तत्वज्ञान विषय है | गौतम मुनि प्रणेता है | श्री वात्स्यायन मुनि का इस पर भाष्य है |
(५) मीमांसा दर्शन के श्री जैमिनी जी कर्ता है | वैदिक कर्मकांड की मीमांसा इसका विषय है | इस पर श्री शबराचार्य का भाष्य है |
(६) वेदांत दर्शन – इसके कर्ता श्री वेदव्यास है, इसमे जीव – ब्रह्म की अद्वैतता पर विचार किया गया है | इस पर श्री शंकराचार्य , स्वामी रामानुजाचार्य, श्री माध्वाचार्य, श्री वल्लभाचार्य आदि के भाष्य मिलते है |
वेद का तीसरा उपांग न्याय - मीमांसा होता है | इसमे ६ दर्शन आते है, यह हम पहले बता चुके है इनमे (१) सांख्य दर्शन श्री कपिल मुनि से प्रणीत है | इसमे प्रकृति – पुरुष का वर्णन है
(२) योग दर्शन – इसके कर्ता श्री पतंजलि मुनि है | इसपर व्यास भाष्य है | इसमे योग की ग्रंथिया सुलझाई गई है |
(३) वैशेषिक दर्शन – इसके प्रणेता श्री कणाद मुनि है ; प्रशस्तपाद का भाष्य है | इसमे संसार को ६ भागो मे विभक्त करके उसका विवरण किया गया है |
(४) न्याय दर्शन – उसमे १६ पदार्थो का तत्वज्ञान विषय है | गौतम मुनि प्रणेता है | श्री वात्स्यायन मुनि का इस पर भाष्य है |
(५) मीमांसा दर्शन के श्री जैमिनी जी कर्ता है | वैदिक कर्मकांड की मीमांसा इसका विषय है | इस पर श्री शबराचार्य का भाष्य है |
(६) वेदांत दर्शन – इसके कर्ता श्री वेदव्यास है, इसमे जीव – ब्रह्म की अद्वैतता पर विचार किया गया है | इस पर श्री शंकराचार्य , स्वामी रामानुजाचार्य, श्री माध्वाचार्य, श्री वल्लभाचार्य आदि के भाष्य मिलते है |
अंतिम वेद का उपांग
है धर्मशास्त्र | इसमे धर्मसूत्र तथा स्मृतिया अंतर्भूत होती है| इनमे (१) गौतम
(२) वसिष्ठ (३) आपस्तम्ब (४) बोधायन आदि धर्मसूत्र मिलते है | स्मृतियाँ भी बहुत
होती है, जिनकी वेद्संहिताये है, उतने ही श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा
स्मृतियाँ होती है | धर्म के सूत्रण (संक्षेप) का नाम धर्मसूत्र है, वेदार्थ के
स्मरण का नाम स्मृति होता है | इनमे (१) मनुस्मृति (२) वृद्धमनु (३) आंगिर: स्मृति
(४) अत्रि (५) आपस्तम्ब (६) औशनस (७) कात्यायन (८) गोभिल (प्रजापति) (९) यम (१०)
बृहद्थम
(११) लघुविष्णु (१२) वृहद्विष्णु (१३) नारद (१४) शातातप (१५) हारीत (१६) वृद्धहारीत (१७) लघुआश्वलायन
(१८) शंख (१९) लिखित (२०) शंख – लिखित (२१) याज्ञवल्क्य (२२) व्यास (२३) संवर्त (२४) अत्रिसंहिता (२५) दक्षस्मृति (२६) देवल (२७) बृहस्पति (२८) पाराशर (२९) बृहत्पराशर (३०) कश्यपस्मृति
(३१) गौतम स्मृति (३२) वृद्धगौतम (३३) वसिष्ठस्मृति (३४) पुलत्स्य (३५) योगिरुज्ञवल्क्य (३६) व्याघ्रपाद (३७) बोधायन (३८) कपिल (३९) विश्वामित्र (४०) शाण्डिल्य (४१) कण्व (४२) दाल्भ्य (४३) भारद्वाज (४४) मार्कण्डेय (४५) लौगाक्शी आदि ६० स्मृतिया है |
(११) लघुविष्णु (१२) वृहद्विष्णु (१३) नारद (१४) शातातप (१५) हारीत (१६) वृद्धहारीत (१७) लघुआश्वलायन
(१८) शंख (१९) लिखित (२०) शंख – लिखित (२१) याज्ञवल्क्य (२२) व्यास (२३) संवर्त (२४) अत्रिसंहिता (२५) दक्षस्मृति (२६) देवल (२७) बृहस्पति (२८) पाराशर (२९) बृहत्पराशर (३०) कश्यपस्मृति
(३१) गौतम स्मृति (३२) वृद्धगौतम (३३) वसिष्ठस्मृति (३४) पुलत्स्य (३५) योगिरुज्ञवल्क्य (३६) व्याघ्रपाद (३७) बोधायन (३८) कपिल (३९) विश्वामित्र (४०) शाण्डिल्य (४१) कण्व (४२) दाल्भ्य (४३) भारद्वाज (४४) मार्कण्डेय (४५) लौगाक्शी आदि ६० स्मृतिया है |
स्मृतो मे आचार,
संस्कार , वर्णधर्म, वर्णसंकर धर्म , स्त्रीत्वधर्म, पुरुषधर्म, राजधर्म,
प्रयश्चिन्तादि बहुत विषय आये है | न्यायदर्शन के भाष्यकार श्री वात्स्यायन मुनि ने लिखा है – “की
यदि धर्मशास्त्र न हो, तो लोकव्यवहार का उच्छेद हो जाय” यह ठीक
है | विधिनिशेधा सब स्मृतियों से ज्ञात
होते है |
वेद, स्मृति एवं पुराण के विरोध मे वेद अधिक माननीय है | पुराण प्रधानता से लोकवृत्त का प्रतिपादन करते है, लोकव्यवहार की व्यवस्थापना उनका प्रधान विषय नहीं | लोकव्यवहार की व्यवस्थापना धर्मशास्त्र का मुख्य विषय है |
इस प्रकार यह सारा साहित्य मिलकर हिंदू धर्म का आधार बनता है |
वेद, स्मृति एवं पुराण के विरोध मे वेद अधिक माननीय है | पुराण प्रधानता से लोकवृत्त का प्रतिपादन करते है, लोकव्यवहार की व्यवस्थापना उनका प्रधान विषय नहीं | लोकव्यवहार की व्यवस्थापना धर्मशास्त्र का मुख्य विषय है |
इस प्रकार यह सारा साहित्य मिलकर हिंदू धर्म का आधार बनता है |
यतो धर्मस्ततो जयः
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