Thursday, April 4, 2013

भारत तब और अब



भारत तब और अब इस विषय पर मुझे जो आपसे बात करनी है उसकी थोड़ी पहले प्रस्तावना ज़रूर करूँगा | अभी का जो भारत है जिसकी मैं बात करूँगा वो पिछले ६६ वर्षों का भारत होगा , यानि १५ अगस्त १९४७ से आज २०१3 तक का भारत | और तब वाले भारत कि जो मैं बात करूँगा वो अंग्रेजो के ज़माने का भारत होगा यानि आज  से लगभग १७५ साल पहले तक का भारत, उससे ज्यादा पीछे वाले भारत को जानने के लिए समय थोडा ज्यादा चाहिए | जिसके ऊपर फिर कभी चर्चा करूँगा | भारत अभी का जो है उसके बारे मे बात कहना शुरू करता हूँ , फिर पीछे चलूँगा |
आज का जो भारत है वो आपके सामने है ! हमारे भारत मे बहुत सारी अच्छाइया  है | आइये पहले कुछ भारत कि विशेषताओ के बारे मे बात करते है | सबसे पहली अच्छाई यह है कि इस देश की मिटटी बहुत अच्छी है अमेरिका, यूरोप कही की भी मिटटी इतनी अच्छी नहीं है जितनी भारत की है. लैटिन अमेरिका के कुछ देश ऐसे है जहा की मिटटी भारत के जैसी है ब्राजील एक ऐसा देश है जहा की मिटटी हमारे देश की मिटटी जैसी है, अर्जेंटीना की मिटटी भी बहुत अच्छी है अफ्रीका के कुछ देशो की मिटटी भी अच्छी है लेकिन अगर फिर तुलना करे तो भारत की मिटटी इन सभी देशो की मिटटी से २१ ही है १९ नहीं है| अगर और गहराइ से बात करे कि हमारे देश कि मिटटी मे क्या अच्छाई है, तो हमारे देश की मिटटी मे १८ तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते है जो विश्व मे किसी भी देश की मिटटी मे नहीं है|
हमारे भारत की मिटटी मे भरपूर मात्रा मे कैल्सियम है , हमारे भारत की मिटटी मे भरपूर मात्रा मे आयरन है, हमारे भारत की मिटटी मे भरपूर मात्रा मे मैग्निशियम है , मैगनीज है, ऑर्गनिक कार्बन है, सल्फर है, मोलिब्डेनम है, सिलिकॉन है ऐसे १८
(18) सूक्ष्म पोषक तत्व बहुत अच्छी मात्रा मे है | जबकि दुनिया मे और देशो की मिटटी मे २ या ३ पोषक तत्व ही मिलते है |
ये भारत कि सबसे बड़ी अच्छाई है | दूसरी भारत की सबसे बड़ी अच्छाई है वो इसी मिटटी से शायद जुडी है या यो कहे कि मिटटी की ये अच्छाई शायद इसी दूसरी अच्छाई के कारण है और वो ये है कि इस देश मे सूर्य का प्रकाश भरपूर मात्रा मे मिलता है | दुनिया मे १०० से ज्यादा ऐसे देश है जहा सूर्य का प्रकाश साल मे सिर्फ ४ महीने ही मिलता है | भारत २०० देशो मे अकेला  ऐसा देश है जहाँ एक साल मे ३६५ दिन सूर्य निकलता है | दुनिया मे १०० से ज्यादा देशो मे कभी कभी
Sunday होता है, Sunday मतलब छुट्टी का दिन नहीं सूर्य का दिन, भारत मे हर दिन Sunday होता है| करोड़ों वर्षों से सूर्य इस देश मे है और अगले करोड़ो वर्षों तक रहने कि तैय्यारी मे है | हमारे भारत कि मान्यता के अनुसार सूर्य का प्रकाश हमें पिछले २०० करोड़ वर्षों से मिल रहा है और अगले २०० करोड़ वर्षों तक रहेगा | जिन देशो मे सूर्य का प्रकाश कभी कभी मिलता है उन्ही देशो से ये Good Morning कहने कि प्रथा प्रारंभ हुई है मतलब जिस दिन वहा  सूर्य निकलता था वो सुबह उनकी अच्छी मानी जाती थी और लोग एक दूसरे को Good Morning कहते थे | हमारे यहाँ every morning is good morning होती है |
सबसे बड़ी बात ये है कि जिस देश मे सूर्य का प्रकाश भरपूर मात्रा मे होता है उसी जगह कि मिटटी अच्छी होती है |
 हमारे देश मे मिटटी मे पैदा होने वाले जो पेड़ पौधे है, जो वनस्पतिया है वो दुनिया मे सबसे ज्यादा है| भारत सरकार ने हमारे यहाँ पैदा होने वाले जो पेड़ पौधे है जो वनस्पतिया है उनकी जो सूची तैयार कि है उसमे ८४००० नाम है और ये अंतिम सूची नहीं है , वैज्ञानिको का मानना है कि अंतिम सूची बनाना थोडा कठिन है क्योकि हर साल हर दिन कोई नई वनस्पति मिल रही है और अंतिम सूची बनाते तक ये संख्या १००००० से ऊपर निकल जायेगी | इतनी विविध वनस्पतिया और पेड़ पौधे किसी भी देश मे नहीं है जो भारत मे है | दुनिया का सबसे बड़ा
herbarium स्कॉटलैंड मे है , उन्होंने ५ लाख से ज्यादा वनस्पतिया और पेड़ पौधे सारे देशो से लाकर संरक्षित किये हुए है और इनमे सबसे ज्यादा जो वनस्पतिया और पेड़ पौधे है वो भारत देश के है | सारे देशो के वैज्ञानिक इस बात पर हैरानी प्रकट करते है कि भारत मे जैव विविधता  बहुत है (rich  bio diversity )|
चौथी बड़ी विशेषता हमारे देश कि यह है कि जो कुछ हमारे देश की मिटटी मे पैदा होता है वो तो गर्व करने लायक है ही, मिटटी के नीचे जो भी पैदा होता है वो भी गर्व करने लायक है |
भारत मे ६३८३६५
  (638365) गांव है, उत्तर से लेकर दक्षिण, पूरब से लेके पश्चिम आप किसी भी गांव मे चले जाइये और इस बात की सूची बनाइये कि उस गांव मे क्या क्या पैदा होता है तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भारत के एक गांव मे जितनी चीजे पैदा होती है उतनी पूरे यूरोप और अमेरिका मे भी पैदा नहीं होती |
भारत के एक एक गांव मे गेहू , चना , मटर, दाल, दाल की कई किस्मे, गेहूं की कई किस्मे , चने की कई किस्मे, धान की कई किस्मे, कई तरह की सब्जियां, कई तरह के फल , कई तरह की जड़ीबूटियाँ जो हम दवाई मे उपयोग करते है, भारत के हर गांव मे मिल जाएँगी |
उदाहरण के लिए यूरोप के एक समृद्ध देश जर्मनी की बात करते है : यहाँ पर कोई भी मीठी चीज पैदा नहीं होती जैसे गन्ना, आम, मौसम्मी, संतरा, केला, अनानस और सारे फल, न ही कोई हरी सब्जी पैदा होती है जैसे पालक, मेथी, मूली , इलायची , काली मिर्च और कोई भी मसाले नहीं होते| जर्मनी मे सिर्फ आलू और प्याज होता है| लेकिन वहां के बाजारों मे ये सारी चीजे उपलब्ध है जो की भारत से आयातित
 (Import) होती है | यही हाल यूरोप के अन्य देशो का भी है |
अब भारत की बात करते है, हमारे यहाँ ४ लाख गांवों मे कुल मिलाकर २५५० किस्म का गन्ना होता है | इसी तरह केले की भारत मे १०००  प्रजातियां है | भारत मे आम की ५००० से ज्यादा जातियां होती है | यदि हम निष्कर्ष निकाले तो भारत के एक एक गांव मे २००० से ज्यादा चीजे पैदा होती है |
सारे देशो की फसलों पर अगर आप नज़र डाले तो ज्यादातर देशो मे आपको २ या ३ फसले मिलेंगी | जिनमे मुख्यतः गेहूं होता है , कपास होता है और थोडा बहुत मक्का होता है |
और भारत के एक एक गांव मे २०० से ज्यादा फसलें होती है |
भारत की ज़मीन के नीचे ९० तरह के खनिज पदार्थ (
minerals) मिलते है जो दुनिया के किसी भी देश मे एक साथ नहीं मिलते | अमेरिका मे कुछ खनिज पदार्थ मिलते है कुछ कनाडा मे मिलते है और यूरोप मे तो बहुत कम मिलते है लैटिन अमेरिका मे कुछ खनिज पदार्थ है , ब्राजील, मेक्सिको आदि मे, अफ्रीका मे थोड़े ज्यादा खनिज पदार्थ है लेकिन ज्यादा से ज्यादा खनिज पदार्थ जिन देशो मे है उनकी संख्या १५ से लेकर ६०-७० तक है और भारत मे ९० से ज्यादा खनिज पदार्थ एक ही देश की सीमा के अंदर मे है | आयरन, बाक्साईट, माईका आदि ९० तरह के खनिज हमारी जमीन के नीचे होते है |
और हमारे यहाँ अभी आन्ध्रप्रदेश के कावेरी बेसिन मे प्राकृतिक गैस (
CNG) का भंडार मिला है | वैज्ञानिको का मानना है कि यदि हम इस गैस का उपयोग भारत मे किसी भी प्रकार की सभी  गाडियों को चलाने मे करें तो भी ये गैस का भंडार ३४० सालो तक खत्म नहीं होगा | और कावेरी बेसिन जैसे ८ क्षेत्र पता चले है , राजस्थान के सूखे क्षेत्र मे  तेल का भंडार भी मिल गया है, जिसका उपयोग हम आने वाले १५० सालो तक कर सकते है |
एक और विशेषता भारत की यह है कि यहाँ का मौसम सबसे अच्छा है | ज्यादातर देशो मे २ तरह का ही मौसम होता है जैसे अफ्रीका मे गर्मी, और अत्यधिक गर्मी, अमेरिका मे ठंडी, और भयंकर ठंडी, लैटिन अमेरिका ब्राजील आदि मे बारिश और भयंकर बारिश | हमारी मान्यताओ के अनुसार भारत मे ६ ऋतुए होती है, जबकि आधुनिक विज्ञान की परिभाषा के अनुसार भारत मे १६
Climatic zones है |  ज्यादातर देशो मे सिर्फ २ ही  Climatic zones है |
अब थोड़ी भारत मे जो बुराइयां आ गयी है उसकी बात करते है, आज के भारत की सबसे बड़ी बुराई यह है कि इतना धन – धान्य से संपन्न होने के बाद भी यहाँ बहुत गरीबी आ गयी है |
भारत सरकार के आंकडो के अनुसार १२० करोड़ की आबादी मे ८४ करोड़ लोग भयंकर गरीब है | सरकार की “अर्जुन सेन गुप्ता कमीशन रिपोर्ट” के अनुसार ८४ करोड़ लोग अत्यंत गरीब है, और इन ८४ करोड़ लोगो को १ दिन मे खर्च करने के लिए २० रूपए नहीं है, इनमे भी ५० करोड़ लोगो को १ दिन मे खर्च करने के लिए १० रूपए नहीं है , २५ करोड़ लोगो को १ दिन मे खर्च करने के लिए ५ रूपए नहीं है, १५ करोड़ लोगो को १ दिन मे खर्च करने के लिए १ रूपया नहीं है और १० करोड़ लोगो को को १ दिन मे खर्च करने के लिए ५० पैसा भी नहीं है | इस रिपोर्ट के अनुसार ३७ करोड़ लोग हर दिन भूखे सोते है और ३७ करोड़ लोगो के पास पहनने के लिए २ कपडे नहीं है |
अब बेरोज़गारी की बात करते है, बेरोज़गारी के बारे मे भारत सरकार का कहना है कि सही रोज़गार जिसे सम्मानजनक रोज़गार कहते है सिर्फ ३.५ करोड़ लोगो के पास है| हमारे देश मे एक शब्द उपयोग किया जाता है जिसे कहते है
“workable Age”  जो १८ से ६० साल मानी जाती है ऐसे ६४ करोड़ लोग है जिनमे सिर्फ ३.५ करोड़ लोगो के पास ही सम्मानजनक रोज़गार है और ये ३.५ करोड़ लोग कौन है, तो इनमे १५ लाख लोग जो है वो आर्मी मे है, १७ लाख लोग रेल्वे मे है, १८ लाख लोग बैंक और बीमा कम्पनियों मे है, ४० लाख लोग पब्लिक सेक्टर मे है, फिर केन्द्र सरकार की नौकरी मे है फिर राज्य सरकार की नौकरी मे है, फिर नगर पालिका की नौकरियों मे है, कुल मिलाकर ३.५ करोड़ लोग है |
३० करोड़ लोग ऐसे है जिनको साल मे सिर्फ ३ महीने काम मिलाता है, जैसे खेतों मे कटाई या बुवाई होती है  तब उनको काम मिलाता है बाकि दिन वो खाली रहते है | ३० करोड़ लोग ऐसे है जो एक गांव से दूसरे गांव या शहर काम की तलाश मे भटकते रहते है मज़दूरी आदि के लिए छोटे मोटे काम जैसे सब्जी बेचना, अखबार बेचना आदि | और दुर्भाग्य से या सौभाग्य से आप और मैं उन ३.५ करोड़ लोगो मे से है जिनके पास सम्मानजनक काम है, पब्लिक सेक्टर मे या प्राइवेट सेक्टर मे |
एक और सबसे बड़ी बुराई भारत मे यह आ गयी है कि यहाँ अशिक्षा बहुत है , आजादी के ६४ साल के बाद भी ५२% लोग अभी भी अशिक्षित है | और थोडा आगे बढते है बुरइयो के बारे मे तो भारत की कुल आबादी मे ७७ करोड़ लोग भयंकर बीमारियों के शिकार है ५ करोड़ ७० लाख लोगो को डायबिटीज़ है , ४.५ करोड़ लोगो को हृदयघात होता है, ८ करोड़ भारतवासियों को कैंसर है , २४ लाख लोग हर साल कैंसर से मरते है, १२ करोड़ लोगो को आँखों के रोग है, १४ करोड़ लोगो को लंग्स के रोग है , १७ करोड़ लोगो को घुटने, कमर, कंधो मे दर्द के रोग है, २० करोड़ से ज्यादा लोगो को हाईपरटेंशन है, बहुत बुरी हालत है, और इससे भी बुरी हालत ये है कि सरकार के पास इन ७७ करोड़ लोगो के इलाज के लिए पैसा नहीं है | केन्द्र सरकार के पास १ साल का २२३०० करोड़ रूपए का
MEDICAL का बजट है , जिसमे से लगभग २०००० करोड़ सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर, नर्स और कर्मचारियों के वेतन मे खर्च हो जाता है २३०० करोड़ रूपए चिकित्सा के लिए बचता है , जिसके हिसाब से प्रति व्यक्ति २० रूपए साल का सरकार के पास पैसा है बीमारी के इलाज के लिए | और २० रूपए मे तो सर्दी जुकाम भी ठीक नहीं होता |
एक और बुराई मे ये है कि भारत मे जो बच्चे पैदा होते है उनमे ६५% बच्चे जन्म के समय एनीमिया के शिकार होते है, विटामिन
C की भरपूर कमी लेके पैदा होते है  और ५०% गर्भवती माताये एनीमिया की शिकार होती है | सारे देशो मे भारत मे ५ साल से कम उम्र के बच्चो को सबसे ज्यादा कुपोषित माना जाता है | भारत को सबसे भ्रष्ट देशो की सूची मे ३ रा स्थान मिला है ये एक और बहुत शर्मनाक बात है | हमारे एक प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने भ्रष्टाचार के बारे मे संसद मे कहा था कि जब मैं यहाँ से १ रूपए किसी गरीब आदमी के विकास के लिए भेजता हूँ तो उस व्यक्ति तक सिर्फ १५ पैसे ही पहुचते है, बाकि सब लुट जाता है सरकार और सरकारी कर्मचारियों के द्वारा| और अब राहुल गाँधी ने कहा है कि १ रूपए मे से ९२ पैसा लुट जाता है सिर्फ ८ पैसा ही गरीब आदमी तक पहुचता है, और ये आकडे किसी अंदाजे से नहीं बताये गए है ये CAG (controller of auditor general) की रिपोर्ट बताती है  |
आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू जब भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होने लोकसभा मे अपने सबसे पहले भाषण मे कहा था कि मेरी सबसे बड़ी लड़ाई जो है वो भ्रष्टाचार के खिलाफ है, उन्होंने कहा था कि एक भी भ्रष्ट आदमी मुझे मिला तो बिजली के तार से उल्टा लटका दूँगा | पंडित जवाहरलाल नेहरू १७ साल लड़ते रहे और भ्रष्टाचार बढता रहा, उन्ही के समय मे देश का सबसे पहला और बड़ा घोटाला हुआ जिसे जीप स्कैंडल कहते है , नेहरू जी के रक्षा मंत्री वी. के. कृष्णमेनन ने यह घोटाला किया था, जब वी. के. कृष्णमेनन पकडे गए तो नेहरू जी ने ये कहा था कि भ्रष्टाचार के बिना लोकतंत्र चल नहीं सकता |
आजादी के ६४ साल के बाद भी आज भारत के लोगो को पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है | भारत मे कुल २५ करोड़ परिवार है जिनमे १४ करोड़ परिवारों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिलता|
कई कई गांव ऐसे है जहाँ पानी लेने के लिए ३-४ किलोमीटर तक जाना पड़ता है | और ये अशुद्ध पानी की वजह से ही बहुत सारी बीमारिया परिवारों मे है | पुलिस के आंकडो के अनुसार आजकल सबसे ज्यादा दर्ज होने वाले मुकदमो मे पानी को लेकर हुई लड़ाइयो के है | हजारो गांवो की हालत ये है कि वहा के लोगो का एक तिहाई जीवन का हिस्सा सिर्फ पानी लाने मे ही बीत जाता है | एक दूसरे के लोग सिर फोड रहे है पीने के पानी के लिए , खराब  हाल है इस देश मे|
और ये बुराइयां बहुत बहुत बताकर मुझे आपको उदास नहीं करना है लेकिन ये हकीकत है आज के भारत की |
अब प्रश्न ये उठता है कि क्या उस समय का भारत भी ऐसा ही था, इसको बताने के लिए मैंने एक समय सीमा निर्धारित की है ताकि अंदाजा लग जाय कि उस वक्त भारत कैसा था. अंग्रेजो के आने के आस पास का आंकलन हम करते है ताकि ये अंदाजा लगाया जा सके कि अंग्रेजो के आने के पहले तक भारत कैसा था |
मैं शुरुवात करता हूँ अंग्रेजो के आने के समय के भारत के बारे मे कहने के लिए एक व्यक्ति का नाम लेता हूँ, उसका नाम था “थॉमस बेबिंगटन मैकाले” वह सन १८३४ मे भारत आया था | उस समय इस देश मे ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अधिकारी होता था विलियम बेंटिक वह गवर्नल जनरल था , उस समय गवर्नल जनरल को वही सारे अधिकार थे जो आज प्रधानमंत्री को होते है | ये जो गवर्नल जनरल की पोस्ट है ये सन १८६० तक चलती रही | सन १७५० मे  ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला गवर्नल जनरल आया जिसका नाम रॉबर्ट क्लाइव था |
मैकाले को विलियम बेंटिक की कैबिनेट मिनिस्ट्री का सलाहकार बनाया गया था | विलियम बेंटिक के कहने पर मैकाले ने भारत का लगभग २ साल तक भ्रमण किया, उसके बाद कलकत्ता मे काउंसिल की एक बैठक मे उसने कहा “
I have travelled length and width of India, but I have never seen a person who is a bagger, and thief in this country India” २ फ़रवरी १८३५ को ये मीटिंग हुई थी कलकत्ता मे जिसमे मैकाले ने ये कहा था | उस वक्त कलकत्ता भारत की राजधानी थी | काउंसिल ने मैकाले से पूछा कि यहाँ कोई गरीब और चोर क्यों नहीं है तो उसने कहा यहाँ लोगो के पास इतनी संपत्ति है कि वो गरीब हो ही नहीं सकते और न ही उन्हें चोरी करने की ज़रूरत है | फिर उससे लोगो की संपत्ति के बारे मे पूछा गया तो उसने कहा कि यहाँ साधारण व्यक्ति के घर मे सोने के सिक्को का ढेर ऐसे लगा होता है जैसे गेहूं और चने का हो | राजाओ की तो मैं बात ही नहीं कर रहा हूँ | यहाँ के लोग सोने के सिक्को की गिनती नहीं करते क्योकि उनका मानना है कि जो चीज़ हमारे यहाँ ज्यादा होती है उसे गिना नहीं जाता बल्कि तौला जाता है | उसके बाद वो कहता है “ such wealth I have seen in this country that I am  mesmerized”. फिर विलियम बेंटिक कहता है कि तुम अपने देश इंग्लैंड की भारत से तुलना करो, तो मैकाले कहता है कि इंग्लैंड तो कही भी नहीं है भारत के मुकाबले , मैकाले कहता है कि क्या तुमने इंग्लैंड का इतिहास नहीं पढ़ा कि कैसे १५ वी शताब्दी मे इंग्लैंड मे ३.५ करोड़ लोग भुखमरी से मर गए थे , जो कि इंग्लैंड की आबादी का ५०% था | फिर वो लन्दन की तुलना कलकत्ता से करता है और कहता है कि लन्दन कि सडको पर ३-३ फुट के गड्ढे ही गड्ढे होते है और यहाँ कि सड़के कितनी अच्छी और चौड़ी है |
फिर वो मजाक मे विलियम बेंटिक से कहता है कि क्या तुम्हे याद नहीं कि कैसे लन्दन की सडको के दोनों और रोज सुबह लोग टॉयलेट के लिए बैठ जाते है | क्योकि १६ वी १७ वी शताब्दी तक इंग्लैंड मे टॉयलेट नहीं हुआ करते थे| इससे अंदाजा लगता है कि १८३५ तक लन्दन कितना खराब रहा होगा | और वो कहता है कि लन्दन की सडको पर जाओ तो भिखारियों की लाइन लगी रहती है और यहाँ मैंने एक भिखारी नहीं देखा | और इस सारे वार्तालाप के दस्तावेज ब्रिटिश कॉमन हॉउस मे आर्काइव्स मे पड़े है , ब्रिटिश लाइब्ररी मे भी पड़े है और आसानी से उपलब्ध है आप भी पढ़ सकते है |
ये तस्वीर है भारत की १८३५ के समय की जब भारत एक समृद्धशाली देश है जहा कोई चोर नहीं है कोई भिखारी नहीं है |अब बात आती है कि भारत मे इतना सोना आया कहाँ से क्योकि भारत मे ९० तरह के खनिज मिलते है पर सोना नहीं मिलता, सिर्फ केरल मे एक जगह है कोलार जहा थोडा सा सोना होता है और वो भी अभी २५ साल पहले पता चला है |
एक इतिहासकार है प्रो. धर्मपाल जिन्होंने अंग्रेजो के समय के भारत पर सबसे ज्यादा खोज की है | उनकी खोज से ये पता चलता है भारत मे संबसे ज्यादा सोना आया निर्यात करने से, अंग्रेजो के आने से पहले ३००० साल तक भारत एक निर्यातक देश (
Exporting Country) रहा है |
हमने दुनिया को कपड़ा बेचा और बदले मे यहाँ सोना आया, सिर्फ कपडा बेचा ही नहीं बल्कि दुनिया को भारत ने कपड़ा पहनना सिखाया , भारत से ही सबसे पहले चीन ने कपड़ा बनाना सीखा, फिर चीन से और देशो मे कपड़ा बनाने की कला पहुची| कपडा भारत मे इसलिए बनाया जाता था क्योकि यहाँ बहुत उच्च किस्म की कपास होती है | अंग्रेजी दस्तावेज कहते है कि भारत मे इतनी प्रीमियम क्वालिटी का मलमल का कपड़ा बनाया जाता था कि १५ मीटर के कपडे के थान को अगर तह करते जाय तो एक माचिस की डिब्बी मे रखा जा सकता था | और ये कपडे की बुनाई किसी मशीन से नहीं बल्कि हाथो से होती थी | इस कपडे की कीमत दुनिया के बाजारों मे सोने से की जाती थी, मतलब कपडे के बदले मे उतना ही सोना भारत को दिया जाता था |
रोम के राजाओ ने जैसे क्लौडिअस, नीरो आदि ने उल्लेख किया है कि वे सिर्फ भारत का बना कपड़ा ही पहनते थे |
कपडे के आलावा एक और चीज़ थी जिसका भारत ने हजारो साल निर्यात किया और वो थी स्टील | स्टील बनाने की तकनीक भारत मे हजारो साल पुरानी है |और अंग्रेज जो हमारे यहाँ आये उनमे से एक अंग्रेज था जिसका नाम था कैप्टन जे. कैम्पवेल उसने भारत के स्टील पर सबसे ज्यादा रिसर्च की, उसने अपनी पुस्तक मे लिखा है  कि भारत का स्टील दुनिया मे सबसे अच्छी क्वालिटी का है | वो कहता है कि भारत से जो स्टील ईस्ट इंडिया कंपनी खरीदती है उससे जो हम पानी के जहाज बनाते है वो जहाज कम से कम ७० साल चलते है , और जो स्टील डेनमार्क से खरीदा जाता है उससे बनने वाले जहाज मात्र १५ साल चलते है | वो कहता है कि ७० साल तक तो हम ये जहाज उपयोग करते है फिर दूसरे देशो को बेच देते है जहा वे इन जहाजों को १५-२० साल और इस्तेमाल करते है | फिर इन जहाजों का लोहा नए जहाज बनाने मे उपयोग कर लिया जाता है | कैम्पवेल लिखता है कि ७० साल तक जहाज पानी मे तैरते रहते है पर इनमे कभी भी जंग(rusting) नहीं लगता | जिस समय की ये बात कही जा रही है यानि १८३५ के आसपास की, उस वक्त अंग्रेजी दस्तावेजों के अनुसार भारत मे २००००  से ज्यादा स्टील बनाने की फैक्ट्रियां थी और लाखो मीट्रिक टन स्टील का उत्पादन होता था , क्योकि भारत मे Iron Ore हजारो सालो से बहुत मात्रा मे पाया जाता है | और एक कहानी तो आप सभी जानते होंगे कि दिल्ली मे एक लौह स्तंभ है जिसमे कभी भी जंग नहीं लगता |
ऐसी ही एक और चीज़ हम निर्यात करते थे और वो थी पतली ईट (Brick), हम दुनिया को ईट बेचते थे जिसकी उम्र होती थी कम से कम १००० साल | और ईट से ईट को जोडने के लिए हम चूना बनाते थे और बेचते थे जिसकी उम्र भी कम से कम होती थी ५०० साल | ऐसी कई सारी चीज़े हम निर्यात (Export ) करते थे,  अब ज्यादा विस्तार मे नहीं जाऊंगा, क्योकि उद्देश्य था कि ये समझना कि सोना भारत मे कहाँ से आया तो, निष्कर्ष ये निकलता है कि जो हमने निर्यात किया उसके बदले मे हमें सोना चांदी हीरे जवाहरात मिलते थे क्योकि उस समय currency system  नहीं था | तो ३००० हज़ार सालो से हमने निर्यात करके सारी दुनिया से इतना सोना कमाया की मैकाले ने घर घर मे सोने का ढेर देखा | और तभी शायद दुनिया ने भारत को सोने की चिड़िया कहा | सबसे अदभुत बात ये रही कि हमने सोना कमाया मेहनत करके निर्यात करके , लूटकर नहीं क्योकि लूटना हमारी परंपरा नहीं है| भगवन राम ने भी सोने की लंका को जीता था पर लूटा नहीं था, लक्ष्मण को तो एक बार लालच आया था कि इस सोने की लंका को अयोध्या ले चलते है, पर भगवन राम ने कहा कि लूटना हमारी परंपरा नहीं है, तभी उन्होंने कहा था “अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते, जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” और यही परंपरा भारत के हर चक्रवर्ती राजा ने निभाई, चाहे वो चंद्रगुप्त हो, अशोक रहा हो , हर्षवर्धन  हो , विक्रमादित्य रहा हो | दूसरे देशो से हमने युद्ध किये और जीते भी पर किसी को भी लूटा नहीं |
तो हमने जो सोना कमाया वो व्यापर करके कमाया और सोना इतना आया कि हमने अपनी जिंदगी मे उसका भरपूर इस्तेमाल किया और जो बच गया तो हमने उसके मंदिर बनवाए | सोने के मंदिर सिर्फ भारत मे ही मिलते है , आपने कभी सोने की मस्जिद या सोने का गिरिजाघर नहीं सुना होगा | भारत मे १३००० हज़ार से ज्यादा ऐसे मंदिर है जहाँ हजारो टन सोना लगा है | अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, गुर्वायुर का स्वर्ण मंदिर , त्रिचिरापल्ली के स्वर्ण मंदिर, कोयम्बतूर के स्वर्ण मंदिर मैसूर के स्वर्ण मंदिर, तिरुपति का स्वर्ण मंदिर, सोमनाथ का स्वर्ण मंदिर आदि|
और तो और एक एक स्वर्ण मंदिर मे इतना सोना चांदी और धन सम्पदा थी कि उसको लूटने मे लुटेरो को १७-१७ साल लग गए , महमूद गजनवी का किस्सा आपने सुना ही होगा |
और हम ये जो समृद्धशाली भारत की बात कर रहे है ये ज्यादा पुरानी नहीं १७५ साल पहले तक की बात कर रहे है मैकाले के समय की |
ये जो मैकाले आया इसने भारत की शिक्षा व्यवस्था को तहस नहस किया ये तो आप सभी जानते है, उसने भारत मे अंग्रेजी शिक्षा लायी| लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली को तहस नहस करने से पहले उसने यहाँ भारतीय शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया |
एक अंग्रेज था जिसका नाम था जी. डब्लू. लिटनर, उसने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे बड़ा सर्वेक्षण किया  और उसने कहा कि उत्तर भारत मे ९७% साक्षरता
(literacy rate ) है | और ये बात है सन १८२३ के आस पास की |
एक थॉमस मुनरो नाम का अग्रेज अधिकारी था उसने दक्षिण भारत की शिक्षा का सर्वेक्षण कराया, वो कहता है कि दक्षिण भारत मे १००% साक्षरता
(literacy rate ) है | और मुनरो व लिटनर की रिपोर्ट तो अभी भी मौजूद है  ब्रिटिश पार्लियामेंट मे है , भारत मे भी उपलब्ध है आर्काइव्स मे आप पढ़ सकते है |
वो कहता है कि १८२३ मे भारत मे एक भी ऐसा गांव नहीं था जहा गुरुकुल (
School) न हो, किसी किसी गांव मे तो एक से ज्यादा गुरुकुल थे | उस ज़माने मे भारत मे सामान्य गांवो की संख्या लगभग ७ लाख ३२ हज़ार थी और इतने ही गुरुकुल थे | और इन् दस्तावेजो मे लिखा है कि जिस दिन गांव के किसी बच्चे को गुरुकुल मे दाखिला लेना होता था उस दिन उसकी उम्र ५ साल ५ महीने ५ दिन और ५ घंटे पूरी होनी चाहिए तभी उसको दाखिला मिलता था | इसके पीछे ज़रूर कोई गहरे कारण रहे होंगे जिन्हें ढूंढने की ज़रूरत है |
इन गुरुकुलो मे बच्चे १४ वर्ष की उम्र तक पढते थे | यहाँ उनको वेद तो पढाये ही जाते थे साथ ही , गणित, एस्ट्रोफिजिक्स, एस्ट्रोनोमी, मेटलर्जी, केमिस्ट्री भी पढाई जाती थी | और ये सब बच्चे अपने अपने विषय मे पारंगत होकर निकलते थे | भारत मे प्राथमिक शिक्षा होती थी , माध्यमिक शिक्षा भी होती थी और उच्चतर शिक्षा भी होती थी | उच्चतर शिक्षा के भारत मे १४००० कॉलेज थे | ५५० से ज्यादा विश्वविद्यालय थे, आपने तो शायद सिर्फ नालंदा और तक्षशिला का नाम ही सुना होगा पर वो तो २५०० साल पुरानी बात है यहाँ हम बात कर है १८२३  के भारत की | और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये गुरुकुल बिना राजा की मदद के चलाये जाते थे| मतलब समाज इनको चलाता था |
समाज कैसे इनको चलता था तो इसके बारे मे लिखा है कि हर गांव मे एक गुरुकुल के लिए भूमि होती थी जिसे माँन्यम कहते थे इस भूमि मे जितना भी उत्पादन होता था वो गुरुकुल के लिए जाता था और अगर बचेगा तो मंदिर के लिए जाता था |
और एक महत्वपूर्ण बात ये कि जिस समय १८२३ मे भारत मे लगभग १००% साक्षरता थी उस वक्त इंग्लैंड मे कोई पढता नहीं था | इंग्लैंड मे जो पहला स्कूल शुरू हुआ पढाई का वो १८६८ मे शुरू हुआ लन्दन मे वो भी चर्च के पिछवाड़े मे | और इस स्कूल मे एक ही विषय पढाया जाता था धर्मशास्त्र (
Theology) माने बायबल | और हमारे यहाँ एक एक गुरुकुल मे १८ विषय पढाये जाते थे |
आपके  मन मे एक सवाल आयेगा कि यदि पहला स्कूल १८६८ मे खुला तो ये केम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड की कहानी क्या है क्योकि ये तो दावा करते है कि कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड १० वी शताब्दी  से चल रहे है | तो जो ये ऑक्सफोर्ड है वो १० वी शताब्दी मे एक थियेटर था जहा तलवारबाजी और तीरंदाजी होती थी और कुछ नाटक खेले जाते थे | इनको यूनिवर्सिटी का दर्जा १७६० मे मिला जब अंग्रेजो ने यहाँ से धन लूटकर इंग्लैंड पहुचाया तब वहाँ इन यूनिवर्सिटीयो को विकसित किया | वहा स्कूल मे भी सिर्फ राजाओ के और बड़े अधिकारियो के बच्चे पढते थे वो भी सिर्फ धर्मशास्त्र ( Theology)| आम आदमी के लिए स्कूलों की व्यवस्था नहीं थी |
शिक्षा मे हम बहुत ऊंचे थे, उद्योग मे भी बहुत ऊंचे थे, विज्ञान और तकनीकि मे भी बहुत आगे थे | हमने मेटलर्जी, गणित सारी दुनिया को सिखाया , हमने नंबर सिस्टम सारी दुनिया को सिखाया | आप अंदाज लगा सकते है मैकाले जब भारत आया तब, शिक्षा से भरपूर भारत, समृद्धि से भरपूर भारत, उत्पादन से भरपूर भारत था | मैकाले जहाँ जहाँ गया उसने वहां की अपनी डायरी मे नोटिंग की है| दक्षिण भारत के एक गांव अर्काड़ का जिक्र किया है , १८४० मे वो कहता है कि दक्षिण भारत के गांव मे एक एकड़ मे ६६ क्विंटल तक धान का उत्पादन होता है | जबकि उस वक्त यूरिया नहीं था
DAP नहीं था | दक्षिण भारत के सामान्य खेतों मे जो खराब माने जाते थे वहाँ भी एक एकड़ मे २० क्विंटल तक धान का उत्पादन होता था |
आज अच्छे से अच्छे खेत मे अगर पूरी ताकत लगा ले तो भी एक एकड़ मे ३० क्विंटल धान का उत्पादन नहीं हो पाता | भारत के व्यापर का अगर आप अंदाजा लगाएंगे तो सारी दुनिया मे जो कुल निर्यात होता था उसका ३३% अकेले भारत का होता था | अगर उत्पादन का अंदाजा लगाये तो दुनिया मे जो कुल उत्पादन होता था उसका ४३% अकेले भारत मे होता था | आमदनी का अंदाजा लगाये तो दुनिया की कुल आमदनी की २७% केवल भारत की थी | यो ही भारत को सोने की चिड़िया नहीं कहा गया उसके पीछे बहुत गहरी बात थी |
एक अंग्रेज इतिहासकार हुआ है जिसका नाम है विलियम डिगबी उसने एक ग्रन्थ लिखा है भारत के बारे मे “
History of British India” ये ग्रन्थ ७ भाग मे है,  इस ग्रन्थ के पहले भाग के प्रारंभ मे ही वो लिखता है कि भारत सोने की चिड़िया नहीं सोने का महासागर है आगे लिखता है, सारे देशो की सोने की नदियो के पानी की तरह से सोना बहकर भारत मे आता है मगर यहाँ से बाहर सोना जाता नहीं है क्योकि भारत सिर्फ निर्यात (export) करता है , आयात (import) कुछ भी नहीं करता | ऐसे २०० से ज्यादा इतिहासकार है इंग्लैंड और अमेरिका के जिन्होंने भारत पर  रिसर्च किया है और उनका यही मनना है कि भारत सोने का महासागर है |
अब थोडा विस्तृत मे भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बात करते है :
मैकाले ने जब सर्वे कराया, उसकी रिपोर्ट मे ये आया कि इस समाज की जो (
cultural system) संस्कृति है वो गुरुकुलो पर टिकी हुई है, आश्रम पद्धति से स्कूल चलते है  | १८३५ मे मैकाले के आदेश पर अंग्रेजो के लगभग १६०० अफसरों ने ये सर्वे किया | तो जो सर्वे है उस की एक रिपोर्ट का एक हिस्सा में आपको यहाँ दे रहा हूँ, ये मैं सिर्फ मद्रास प्रेसीडेंसी की रिपोर्ट का हिस्सा सुना रहा हूँ जो कि भारत का सिर्फ एक तिहाई भाग था , अंग्रेजो के रिकॉर्ड के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसी  मे सन १८३५ मे १५०००० कॉलेज है, और उस ज़माने के अंग्रेजो के Land Revenue के अगर आप रिकॉर्ड देखे  India office library मे तो आपको पता चलेगा कि उस वक्त मद्रास प्रेसीडेंसी मे १ लाख सत्तावन हज़ार गांव है | मतलब हर गांव मे लगभग एक कॉलेज है | और इन कॉलेजो को अंग्रेज अपनी terminology मे   Higher learning Institutes कह रहे है | माने उच्च शिक्षा के कॉलेज है कोई छोटे स्कूल नहीं है | स्कूलों के बारे मे तो वो कह रहे है कि हर गांव मे २-३ है | लेकिंन ये डेढ़ लाख कॉलेज है | और इन डेढ़ लाख कॉलेज मे पढाया क्या जाता है तो अंग्रेजो के सर्वे मे लिखा है कि इनमे १५०० तो सर्जरी के कॉलेज है | और ये सर्जरी के कॉलेज से पढकर निकलने वाले लोग कौन है तो ये भी बड़ा रोचक लिखा है कि  मद्रास प्रेसीडेंसी  मे एक जाति है जिसे हम नाई कहते है, उस जाति के सारे लोग सर्जरी सीखते है इन कॉलेजो मे | तो कभी कभी हमें इस देश मे एक गलतफहमी हो गयी है अंग्रेजो की वजह से की शूद्रो को तो कभी पढने ही नहीं दिया हमने, और ब्राम्हणों ने इतने अत्याचार किये शूद्रो पर और उनको पढने ही नहीं दिया | तो ये कैसे संभव है कि जहा के नाई सर्जन है उनको पढने न मिला हो ? और इन कॉलेजो मे पढने वाले छात्रों (student) का Classification किया है अंग्रेजो ने , ब्राम्हण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्रो के आधार पर, वो कहते है कि यहाँ  पढने वाले ७०% छात्र शूद्र है | और ३०% मे ब्राम्हण, वैश्य, क्षत्रिय है | और इसी रिपोर्ट मे लिखा है कि भारत मे जो शूद्र है इनके पास सबसे ज्यादा हुनर, तकनीकी है और यही जाति सबसे ज्यादा इस हुनर और तकनीकी को परंपरागत तरीके से अपने बच्चो आदि को transfer करती है |  
अगर मद्रास मे और उसके आस पास आज भी आप जाईये तो वहा आपको एक जाति मिलेगी जिसे पेरियार कहते है | आज के ज़माने मे यह जाति पूरे साऊथ मे एक बहुत ही नीची जाति मानी जाती है , लेकिन उस समय १८३५ मे इस जाति की हैसियत क्या है ये में आपको उस रिपोर्ट मे जो लिखा है वो बताता हूँ उस वक्त आर्किटेक्ट (
Building Design) के मद्रास प्रेसीडेंसी मे लगभग २२०० कॉलेज है , जिनके जो मुख्य आचार्य है वो सब पेरियार है यानि पेरियार जाति के लोग सबसे बड़े आर्किटेक्ट है , और पेरियार जाति का काम रहा है मंदिर बनाने का , दक्षिण भारत मे मंदिरों की प्रथा उत्तर भारत से ज्यादा है आज भी आप देखेंगे वहा  के मंदिरों का जो Design है  वो अदभुत है , वहा  ऐसे ऐसे मंदिर है कि अगर आप एक कोने मे खड़े होकर आवाज दे तो वो आवाज ३ Km तक सुनाई देती है | तो पेरियार जाति जो है वो उस वक्त एक बहुत ही सम्माननीय और सशक्त जाति है जिनका मुख्य काम है मंदिर निर्माण करना |बाद मे इसी जाति को अंग्रेजो ने सन १८९० के आस पास बर्बाद कर दिया|  उस वक्त मद्रास का एक कलेक्टर था ए. ओ. ह्यूम जिसने बाद मे १९०५ मे काँग्रेस  की  स्थापना की थी | उसने एक कानून निकाला कि आज के बाद पेरियार जाति के लोग मंदिर नहीं बनायेंगे और अगर बनायेंगे तो वो क़ानूनी अपराध होगा |  इसका परिणाम ये हुआ कि ५०-६० साल बाद ये जाति बर्बाद होती गई और आज बिलकुल किनारे पर पड़ी है | अंग्रेजो ने ऐसे तोडा है भारत वासियों को | तो निष्कर्ष यह है कि जो हुनर वाली जाति है भारत मे उनको शूद्र कहा गया | और अंग्रेजो ने उनकी हैसियत नीचे गिराई | क्योकि मैकाले जब यह कह रहा है कि इंडियन सोसाइटी को अगर तोडना है , अगर अंग्रेजो के लिए गुलाम बनाना है तो वो एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है और कह रहा है कि किसी भी खेत मे दूसरी फसल लगाने से पहले उस खेत को पहले जमकर जोता जाता है | माने भारत मे ब्रिटेन की संस्कृति लाने से पहले यहाँ की संस्कृति को पहले खत्म कर दो फिर उसमे ब्रिटेन की संस्कृति के बीज डालो | इसके लिए वो कहता है कि भारत की  संस्कृति को नष्ट करने के लिए सबसे पहले यहाँ की न्याय व्यवस्था को तोडना है और शिक्षा व्यवस्था को तोडना है | और भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे मे वो कहता है १८३५ मे, कि इंग्लैंड मे कोई जनता भी नहीं कि सर्जरी क्या होती है | इंग्लैंड मे पहली सर्जरी की पढाई १९१० मे प्रारंभ हुई थी | और हिंदुस्तान मे उससे हजारो साल पहले से सर्जरी पढाई जा रही है |
प्लास्टिक सर्जरी क्या होती है १८५०-६० तक इंग्लैंड मे कोई जानता भी नहीं था |और हमारे यहाँ उससे कई सौ साल पहले से ये पढाई जा रही थी |
एक अंग्रेज अधिकारी का Published Statement  है , उसका नाम था कर्नल कूट , वह अंग्रेजो की तरफ से हैदर अली से लडने आया था , हैदर अली से युद्ध मे वो हार गया, ये बात है १७८० की | हैदर अली अंग्रेजो से कभी भी हारा नहीं था | कर्नल कूट अपनी पुस्तक मे सारा वर्णन करता है कि हैदर अली के सैनिको ने मुझे बंदी बना लिया , हैदर अली सिंहासन पर बैठा था और मैं  उसके चरणों मे पड़ा था, हैदर अली अगर चाहता तो एक झटके मे मेरी गर्दन काट सकता था, मगर उसने मुझे बेइज्जत करने के लिए मेरी नाक काट दी | और मुझे एक घोड़े पर बिठाकर मेरी कटी नाक मेरे हाथ मे रखकर मुझे कहा कि जाओ ऐसे ही ब्रिटेन वापस लौट जाओ | वो लिखता है  कि , भागते  भागते मैं कर्नाटक के एक गांव बेलगाम पंहुचा, वहाँ मुझे एक वैद्य मिला और उसने मुझसे पूछा  कि ये नाक कैसे कटी तो मैंने झूठ बोल दिया कि पत्थर की चोट से कट गयी , मगर उसने पहचान लिया और बोला कि ये तो तलवार से काटी गयी है, फिर मैंने उसे सारा किस्सा सुना दिया, तब उसने कहा कि ये नाक मैं जोड़ सकता हूँ , पर मुझे विश्वास नहीं हुआ क्योकि मुझे पता ही नहीं था कि शरीर का अगर कोई अंग कट जाय तो उसे पुनः जोड़ा भी जा सकता है, तब वो वैद्य मुझे अपने घर ले गया और उसने  डेढ़ घंटे तक मेरी नाक का ऑपरेशन किया | इस पूरे ऑपरेशन का उल्लेख उसने ३० पन्नों मे किया है | उसके बाद १५ दिन तक मैं उसके यहाँ रहा फिर उसने मुझे एक लेप दिया और कहा कि इसे सुबह शाम अपनी नाक पर लगाना | ३ महीने बाद कर्नल कूट जहाज से इंग्लैंड पंहुचा और उसने वहा के पार्लियामेंट मे सबसे पहले अंग्रेजो से ये पूछा कि बताओ क्या मेरी नाक कटी है, तो अंग्रेजो ने उत्तर दिया कि तुम झूट बोल रहे हो तुम्हारी नाक कटी ही नहीं है | तब उसने सारा किस्सा पार्लियामेंट मे सुनाया | उसके बाद अंग्रेजो का एक दल बेलगाम पंहुचा उस वैद्य के पास, और उससे पुछा कि तुमने ये प्लास्टिक सर्जरी कहाँ से सीखी, तो वो वैद्य बोला ये काम करने वाले वैद्य तो तुम्हे हर गांव मे मिल जायेंगे, और ये सब हमें गुरुकुल मे सिखाया जाता है | उसके बाद उन अंग्रेजो ने गुरुकुल मे दाखिला लिया और वहा सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी सीखी और फिर इंग्लैंड मे ये विद्या ले गए | जिन जिन अंग्रेजो ने गुरुकुल मे ये सब सीखा उनकी डायरिया अभी मौजूद है और ब्रिटिश कॉमन हॉउस मे उपलब्ध है |
एक अंग्रेज की डायरी का मैं यहाँ ज़िक्र करना चाहता हूँ | उस अंग्रेज का नाम है डॉक्टर थॉमस क्रूसो,  ये अंग्रेज सन १७९२ मे पुणे मे एक गुरु से प्लास्टिक सर्जरी और सर्जरी की शिक्षा ले रहा था, वो लिखता है कि मैंने पहली बार एक विशेष गुरु से सर्जरी सीखी जो जाति का नाई था | यहाँ ये बात ध्यान देने वाली है कि हमारे यहाँ नाई, चर्मकार आदि ये ज्ञान के बड़े पुलिंदे हुआ करते थे | नाई है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उसका प्रवेश वर्जित नहीं था | जाति के आधार पर हमारे यहाँ गुरुकुलो मे प्रवेश नहीं हुआ है , जाति के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी , वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सब कुछ चलता रहा है | और वो अंग्रेज लिखता है कि चर्मकार तो ज्यादा अच्छा सर्जन हो सकता है क्योकि उसको चमड़ा सिलना आता है | वो लिखता है कि सिखाने के बाद उस गुरु ने मुझसे एक ऑपरेशन कराया , एक मराठा सैनिक के दोनों हाथ युद्ध मे कट गए थे उसके दोनों हाथो को जोडना था | ये ऑपरेशन उस गुरु ने मुझसे करवाया और ऑपरेशन सफल हुआ | उसके बाद वो लिखता है कि मैंने अपने जीवन मे इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सीखा और बदले मे उसने मुझसे एक पैसा भी नहीं लिया इससे बड़ा आश्चर्य मेरे जीवन मे कोई नहीं है | फिर डॉक्टर थॉमस क्रूसो यहाँ से सीखकर इंग्लैंड गया और वह उसने एक प्लास्टिक सर्जरी का स्कूल खोला और फिर वहा अंग्रेजो को सिखाया |
फिर अंग्रेजो ने दुनिया को वहा से सिखाया | दुर्भाग्य से इतिहास मे उस प्लास्टिक सर्जरी के स्कूल का तो वर्णन है पर इतिहास के उन ग्रंथो मे कही भी उन वैद्यों का नाम तक नहीं आया जिन्होंने अंग्रेजो को प्लास्टिक सर्जरी सिखाई | और हम इस बात से क्यों वंचित रह गए क्योकि १७ वी शताब्दी से १९ वी शताब्दी तक जब इतिहास लिखा जा रहा था सारे विश्व का उस वक्त हम अंग्रेजो के गुलाम थे , और हम वहा तक नहीं पहुच पाए| और अंग्रेजो ने यहाँ से सब सीखकर वहा ले गए और वहा उस पर अपनी मुहर लगाकर फिर से भारत मे लाए और हमें बताया गया कि हमें तो कुछ आता ही नहीं था जो कुछ भी दिया अंग्रेजो ने दिया |
अब प्रश्न ये उठता है कि हमारी इतनी विशाल सम्पदा , इतनी सुसज्जित संस्कृति का पतन अन्ग्रेजो  ने किया कैसे, और हम इतने गरीब कैसे होते चले गए | तो ये लूट की कहानी प्रारंभ हुई २३ जून १७५७ के प्लासी के युद्ध से | इसको मैं थोडा विस्तार से बताना चाहूँगा | १७५७ मे  अंग्रेजो का पहला गवर्नर जनरल रॉबर्ट क्लाइव भारत मे था उसने बंगाल के राजा सिराजुद्दौला से बंगाल मे व्यापर करने की अनुमति मांगी थी, सिराजुद्दौला अंग्रेजो के इरादे जनता था और उसने रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल से भाग जाने को कह दिया | इस पर रॉबर्ट क्लाइव ने युद्ध करने को कहा | तो सिराजुद्दौला तैयार हो गया | कलकत्ता के प्लासी  के मैदान मे युद्ध होना तय हुआ | रॉबर्ट क्लाइव की सेना मे ३५० अंग्रेज सैनिक थे और सिराजुद्दौला की १८००० की सेना थी| ये देखकर रॉबर्ट क्लाइव समझ गया कि युद्ध तो १ घंटे भी नहीं चलेगा और हम सब मारे जायेंगे | फिर उसने एक चालाकी की, उसने सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर को फोड लिया और उसे सत्ता का लालच देकर और १ करोड़ स्वर्ण मुद्राओ का लालच देकर सिराजुद्दौला की सेना को अंग्रेजो के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मना लिया, उसने मीर जाफर के साथ संधि कर ली जिस संधि का गवाह सेठ अमीचंद था जो रॉबर्ट क्लाइव की तरफ से गवाह था, रॉबर्ट क्लाइव सेठ अमीचंद के घर ठहरा हुआ था, और सेठ उसकी आवभगत करता था  | इस संधि के दस्तावेज अभी भी मौजूद है | इस तरह मीर जाफ़र ने १८००० सैनिको का ३५० अंग्रेज सैनिको के सामने आत्मसमर्पण करा दिया | यद्ध हुआ ही नहीं प्लासी के मैदान मे सिर्फ एक संधि हुई रॉबर्ट क्लाइव और मीर जाफ़र के बीच| फिर रॉबर्ट क्लाइव ने अंग्रेजो की जीत की घोषणा कर दी और १८००० सैनिको को बंदी बनाने का नाटक किया |
रॉबर्ट क्लाइव अपनी डायरी मे एक बात लिखता है जो बहुत दर्द देती है ; वो लिखता है कि जब मैं और मेरे ३५० सैनिक और उनके पीछे १८००० भारतीय सैनिको का हमने जीत का जुलूस निकाला प्लासी से कलकत्ता के बीच, तो सडको पर दोनों ओर हजारो भारतीय नागरिक हमारी जीत का जुलूस  देखकर ताली बजा रहे थे , अगर उस दिन १-१ भारतीय ने उठाकर पत्थर हमें मारा होता तो भारत का इतिहास १७५७ मे ही बदल गया होता , उसी दिन मैं समझ गया कि भारत को हम जीत लेंगे, यहाँ के लोग सिर्फ ताली ही बजा सकते है |
उसके बाद की कहानी आप जानते ही होंगे कि सिराजुद्दौला को मारकर फिर मीर जाफर को राजा बनाया उसको भी रॉबर्ट क्लाइव ने मार डाला और बंगाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया | उसके बाद रॉबर्ट क्लाइव ७ साल तक बंगाल को लूटता रहा , फिर उसका ट्रांसफर हो गया और वो ब्रिटेन चला गया, लूट का माल ले जाने के लिए उसने कुछ पानी के  जहाज किराये पर लिए थे | ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे जब उससे पूछा गया कि तुम भारत से क्या लाए हो लूटकर, तो उसने कहा कि मैं भारत से सोना चांदी हीरे जवाहरात लाया हूँ , फिर उससे पूछा गया कि तुम कितना लूट का माल लाए हो तो उसने कहा पता नहीं मुझे अंदाजा नहीं है , फिर उससे पूछा गया कि कुछ तो अंदाजा होगा , तब उसने कहा कि ये सारा लूट का सामान लाने के लिए मुझे वहाँ से ९०० (
900) पानी के जहाज किराये पर लेने पड़े | इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि ये भारत मे अंग्रेजो द्वारा पहली लूट थी, और रॉबर्ट क्लाइव कोई एक अकेला लुटेरा नहीं था उसके बाद वारेन हेस्टिंग आया उसने लूटा , फिर विलियम पिट आया, फिर कर्जन आया और ऐसे ८४ गवर्नर जनरल भारत आये और उन्होंने भारत को लूटा | और इस लूट की वजह से भारत गरीब होता गया | इस तरह अंग्रेजो ने भारत को बेइंतहा लूटा | और इसी लूट का धन जब इंग्लैंड जाने लगा तो इंग्लैंड अमीर होता गया और भारत गरीब होता गया, फिर इसी लूट के धन से अंग्रेजो ने औद्योगिक क्रांति की जिसे आप Industrial revolution के नाम से जानते है |
 फिर दुनिया मे दूसरे देशो का अंग्रेजो के खिलाफ गुस्सा पैदा हुआ कि तुम भारत को क्यों इतना लूट रहे हो , तब अंग्रेजो ने नया तरीका निकाला लूटने का, तब उन्होंने कहा कि अब हम भारत को
 officially लूटेंगे मतलब कानून बनाके लूटेंगे | तब उसके लिए उन्होंने कुछ लूट के कानून बनाये | इसके लिए उनकी संसद मे एक बहस हुई कि कैसे भारत को लूटा जाय | सारे सांसद अपने अपने सुझाव दे रहे थे तब उन्होंने कहा कि भारत को लूटना है न तो सबसे पहले भारत मे उत्पादन पर टैक्स लगाओ क्योकि भारत मे उत्पादन बहुत होता है सारी दुनिया का ४३%| इस उत्पादन पर अगर हम टैक्स लेने लगे तो हमें बहुत पैसा मिलेगा, तब उन्होंने सबसे पहला कानून बनाया “Central Excise Duty Act”| और टैक्स कितना निर्धारित किया उन्होंने , अगर कोई १०० रूपए का उत्पादन करे तो उस पर ३५० रूपए Central Excise Duty (टैक्स) लगेगा | फिर जब उत्पादन करेंगे तो बेचेंगे भी इसलिए फिर उन्होंने बिक्री पर टैक्स लगाया “Central Sales Tax”  और वो था १२० % | फिर उन्होंने कहा कि अगर माल बेच रहे है तो फिर उस पर मुनाफा भी कमाएंगे भारतीय तो फिर उस मुनाफे पर भी टैक्स लगाओ तब उन्होंने मुनाफे पर टैक्स लगाया जिसे कहा गया “Income Tax जो कि ९७ % (97)था  | फिर उन्होंने कहा ये माल बनायेंगे और बेचेंगे तो एक गांव से दूसरे गांव जायेंगे तो लाने ले जाने पर टैक्स लगा दो, तो उन्होंने लगाया “Road Tax” | और Road के ऊपर कोई पुल पर से माल जा रहा है तो Toll Tax लगा दो | फिर उन्होंने कहा जिस गांव मे ये माल बना रहे है उस गांव पर एक टैक्स लगा दो तो बना Municipal Corporation Tax ये १८४० मे आया | फिर उन्होंने तय किया जिस गांव मे सामान लेकर आते है उस गांव मे घुसते ही एक टैक्स लगा दो, तो वो लगा octroi टैक्स  | फिर अंग्रेजो ने कहा ये लोग जो मुनाफा कमाएंगे उससे अपने घर बनायेंगे तो घरों पर टैक्स लगा दो तो वो टैक्स बना House tax| फिर उन्होंने कहा कि घर बनाने के बाद जब इनके पास पैसा बचेगा तो ये प्रोपर्टी बनायेंगे तो उस पर भी टैक्स लगा दो, तो फिर बना Property Tax| ऐसे २३ टैक्स अंग्रेजो ने लगाये भारत पर, जो आज तक हमारी सरकारों ने लगाकर रखे हुए है | १८४० से १९४७ तक टैक्स लगाकर अंग्रेजो ने भारत को बहुत लूटा|
और इन्ही टैक्स की वजह से भारत मे बेरोज़गारी बढ़ी, वो ऐसे जब अंग्रेजो ने टैक्स लगाये तो भारत के माल की कीमते बढ़ी, जिससे दुनिया के बाजारों मे भारत का माल महंगा हुआ और बिक्री कम हुई, और जो भारत का जो ३३% का निर्यात था वो घटकर ५% पर आ गया | जिससे भारत के उद्योग बंद होने लगे और मज़दूर सड़क पर आ गए और बेरोजगारी बढती गयी| जिसकी वजह से भुखमरी बढती गयी | १८४० से १९४७ तक भारत मे ४.५ करोड़ लोग भुखमरी से मरे |
और भारत की शिक्षा व्यवस्था को तहस नहस करने के लिए और कॉन्वेंट शिक्षा भारत मे प्रारंभ करने के लिए मैकाले ने एक कानून बनाया जिसे कहा गया “
Indian education Act”, इस कानून के तहत ये कहा गया कि गुरुकुल मे संस्कृत मे पढाना गैर  कानूनी है और अंग्रेजी मे पढाना कानूनी है, और संस्कृत को Dead language घोषित कर दिया गया, सारे गुरुकुलो को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया और गुरुकुलो को मिलने वाले दान पर पाबन्दी लगा दी गयी | जिसका परिणाम यह हुआ कि ९० साल मे इस देश की सारी शिक्षा तहस नहस हो गयी|
और अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार करने के लिए अंग्रेजो ने एक व्यक्ति नियुक्त किया जो उनका मुलाजिम था, जिसका नाम था राममोहन , बाद मे अंग्रेजो ने ही इसको राजा की उपाधि दि जिसे हम आज राजा राममोहन राय के नाम से जानते है, मैं इसके बारे मे अभी नहीं बताना चाहता | कभी फिर इस बारे मे विस्तार से चर्चा करूँगा |
इस तरह से जब शिक्षा चली गयी, व्यापर चला गया उद्योग चला गया तो फिर बचा क्या, सब खत्म हो गया, आजादी ही चली गयी तो सब चला गया | उसके कारण यह सारा देश बिखर गया |
इस विषय को अब मैं यही पर समाप्त करता हूँ, यदि मुझे कुछ और जानकारी मिलती है तो, भारत के स्वर्णिम इतिहास के बारे मे आगे भी आपको और जानकारी देने की कोशिश करूँगा |






No comments:

Post a Comment