Wednesday, May 1, 2013

धर्मशास्त्र की महत्ता - (भारतीय संस्कृति)

कुछ जानने योग्य बातें -


 दो प्रकार का धर्म
१. इष्ट अर्थात यज्ञ याग २. पूर्त अर्थात मंदिर जलाशय का निर्माण, वृक्षारोपण , जीर्णोद्धार ! इन दोनों का निर्देश इष्टपूर्त शब्द से होता है
मुक्ति के दो साधन
तत्वज्ञान एवं तीर्थक्षेत्र मे देहत्याग
दो पक्ष
कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष
तिथियों के दो प्रकार
१. शुद्धा- सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहने वाली २. विद्धा (यासखंडा) इसके दो प्रकार माने जाते है, (अ). सूर्योदय से ६ घटिकाओ तक चलकर दूसरी तिथि मे मिलने वाली (आ). सूर्यास्त से ६ घटिका पूर्व दूसरी तिथि मे मिलने वाली !
अशौच के दो प्रकार
जननाशौच और मरणाशौच
दो प्रकार के विवाह
अनुलोम , प्रतिलोम
पूजा के तीन प्रकार
वैदिकी, तांत्रिकी एवं मिश्रा (तान्त्रिकी पूजा शूद्रो के लिए उचित मानी गयी है)!
जप के तीन प्रकार
वाचिक, उपांशु , मानस !
तीन तर्पण योग
देवता (कुल संख्या ३१ ), पितर और ऋषि(कुल संख्या ३०)
गृहमख के तीन प्रकार
अयुत होम, लक्ष्य होम, कोटि होम!
यात्रा के योग्य त्रिस्थली
प्रयाग, काशी, गया
त्रिविध कर्म
संचित, प्रारब्ध , क्रियमाण
तीन ऋण
देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि ऋण
तीन प्रकार का धन
शुक्ल, शबल , कृष्ण
कालगणना के तीन सिद्धांत
सूर्यसिद्धान्त, आर्यसिद्धान्त, ब्राह्मसिद्धांत
मृत पूर्वजो के निमित्त तीन कृत्य
पिण्ड पितृयज्ञ, महापितृयज्ञ , अष्टकाश्राद्ध
कलिवर्ज्य तीन कर्म
नियोग विधि, ज्योतिष्टोम मे अनुबंधा गो की आहुति , ज्येष्ठ पुत्र को पैतृक संपत्ति का अधिकांश प्रदान !
रात्री मे वर्जित तीन कृत्य
स्नान , दान, श्राद्ध (किन्तु ये तीन कृत्य ग्रहण काल मे आवश्यक है )
विवाह के लिए वर्जित तीन मास
आषाढ़,माघ , फाल्गुन (कुछ ऋषियों के मत से विवाह सभी कालो मे सम्पादित हो सकता है)!
वर्ष कि तीन शुभ तिथियाँ
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (वर्ष प्रतिपदा ) , कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा , विजयादशमी
ब्राह्मण  के तीन विभाग
ब्राह्मण , द्विज , विप्र (ब्राह्मण कुल मे जन्म लेने पर 'ब्राह्मण' कहलाता है , उपनयन संस्कार होने के बाद 'द्विज' कहलाता है और वेदाध्ययन पूर्ण होने पर 'विप्र' कहलाता है )
चार युग
सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग
चार धाम
द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम
चारपीठ
शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरीपीठ
चार वेद
ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद
चार आश्रम
ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास
चार पुरुषार्थ
धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष
चार वर्ण
ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र
गृहस्थाश्रमी के प्रकार
शालीन, वार्ताजीवी, यायावर, चक्रधर और छोराचारिक
चार मेध
अश्वमेध, सर्वमेध, पुरूषमेध, पितृमेध ! चार मेध यज्ञ करने वाला विद्वान पंक्तिपावनमाना जाता है !
यज्ञों के चार पुरोहित
अध्वर्यु, आग्नीध्र, होता, एवं ब्रह्मा
चार वेदव्रत
महानाम्नी व्रत , उपनिषद व्रत, और गोदान इनकी गणना सोलह संस्कारो मे की जाती है
चार कायिक व्रत
एकभुक्त, नक्तभोजन, उपवास, अयाचित भोजन
चार वाचिक व्रत
वेदाध्ययन , नामस्मरण , सत्यभाषण , अपैशुन्य (पीछे निंदा न करना)
पापमुक्ति के चार उपाय
व्रत , उपवास, नियम, शरीरोत्ताप
वानप्रस्थो के चार प्रकार
वैखानस, उदम्बर, वाल्खिल्य, वनवासी ! आहार कि दृष्टी से दो प्रकार (१) पचनामक [पक्वभोजी] (२) अपचानात्मक (अपना भोजन न पकाने वाले)
वानप्रस्थाश्रमी के लिए आवश्यक श्रौत यज्ञ
आग्रायण इष्टि, चातुर्मास्य , तुरायण , दाक्षायण
सन्यासियों के चार प्रकार
कुटीचक, बहूदक, हंस , परमहंस (परमहंस के दो प्रकार विद्वतपरमहंस , विविदिशु)
चार प्रकार की प्रलय
नित्य, नैमित्तिक, प्राकृतिक, आत्यंतिक
सभी कर्मो के लिए शुभ वार
सोम, बुध, गुरु , शुक्र
धार्मिक कृत्य के लिए विचारणीय चार तत्व
तिथि, नक्षत्र , करण , मुहूर्त
तिथि वर्ज्य चार कर्म
षष्ठी को तैल, अष्टमी को मांस , चतुर्दशी को क्षौर कर्म, पूर्णिमा-अमावस्या को मैथुन
चार अंतःकरण
मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार
वेद मंत्रो के पांच विभाग
विधि, अर्थवाद, मंत्र, नामधेय, प्रतिषेध
यज्ञ की पांच अग्नियाँ
१. आहवनीय , २. गार्हपत्य , ३. दक्षिणाग्नि, (इन्हें त्रेता तीन पवित्र अग्नियाँ कहते है) ४. औपासन, ५. सभ्य (पंचाग्नि आराधना करने वाले गृहस्थाश्रमी ब्राह्मण को पंक्तिपावीउपाधि दी जाति है )
पांच मानस व्रत
अहिंसा , सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य , अकल्कता (अकुतिलता)
दुर्गा पूजा मे प्रयुक्त पांच चक्र
राजचक्र, महाचक्र देव्चाक्र, वीरचक्र  , पशुचक्र  (इसके अतिरिक्त तांत्रिक साधना मे प्रयुक्त चक्र है : अकडम चक्र , ऋणधन  चक्र, शोधन चक्र , राशिचक्र, नक्षत्र चक्र इन सबमे श्री चक्र प्रमुख एवं प्रसिद्ध है )
सन्यासी के भिक्षान्न के पांच  प्रकार
मधुकर, प्रकाणीत , आयाचित, तात्कालिक , उपपन्न
पञ्चामृत
दुग्ध , दधि, मधु, घृत , शर्करा
पांच महायज्ञ
देव, पितृ, मनुष्य, भूत, ब्रह्म
पञ्च गव्य
गाय का घी, दूध , दही , गोमूत्र एवं गोबर (इसके मिश्रण को ब्रह्मकूर्च कहते है )
पांच महापातक
ब्रह्महत्या , सुरापान , चोरी , गुरुपत्नी से सहवास, महापातकी से दीर्घकाल तक संसर्ग
पापफल के पांच भागीदार
कर्ता, प्रयोजक, अनुमन्ता , अनुग्राहक , निमित्त
पञ्चायतन देव
गणेश, विष्णु , शिव , देवी और सूर्य
पंच तत्व
प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश
पञ्चांग के पांच अंग
तिथि , वार, नक्षत्र, योग , कारण
तिथियों के पांच अंग
नंदा(१,,११), भद्र (२,,१२), विजया (३,,१३ ), रिक्ता (४, , १४ ), पूर्णा (५, १० ,१५ )
दिन के पांच विभाग
प्रातः संगव, मध्यान्ह , सायाह्न !सम्पूर्ण दिन १५ मुहूर्तो मे बांटा गया है , दिन का प्रत्येक भाग तीन मुहुर्तों  का होता है ! श्राद्ध के लिए ८ वे से १२ वें तक के मुहूर्त योग्य काल है !
छः प्रकार का  धर्म
वर्णधर्म , आश्रमधर्म, गुणधर्म , निमित्तधर्म, साधारण धर्म
दिन के छः कर्म
स्नान , संध्या, जपहोम, देवतापुजन , अतिथिसत्कार
ब्राह्मण के षट कर्म
यजन , याजन, अध्यनन अध्यापन, दान एवं प्रतिग्रह
यतियो के छः कर्म
भिक्षाटन , जप, ध्यान , स्नान , शौच , देवार्चन
जल स्नान के छः प्रकार
नित्य, नैमित्तिक , काम्य , क्रियांग, मलापकर्षण, क्रियास्नान
गौण स्नान
मंत्र , भौम , आग्नेय , वायव्य , दिव्य, मानस ( ये स्नान रोगियों के लिए बताये गए है )
संवत प्रवर्तक छः महापुरुष
युधिष्ठिर , विक्रम , शालिवाहन , विजयाभिनंदन , नागार्जुन, कल्कि
पुनर्भू: (अर्थात पुनर्विवाहित "विधवा") के छः प्रकार
१. विवाह के लिए प्रतिश्रुत कन्या २. मन से दी  हुई ३.जिसकी कलाई मे वर के द्वारा कंगन बाँध दिया है ४.जिसको पिता के द्वारा जल के साथ दान किया हो ५. जिसने वर के साथ अग्निप्रदक्षिणा कि हो ६. जिसे विवाहोपरांत बच्चा हो चुका हो !. इनमे प्रथम पांच प्रकारों मे वर कि मृत्यु अथवा वैवाहिक कृत्य का अभाव  होने के कारण इन कन्याओ को पुनर्भू अर्थात पुनर्विवाह के योग्य माना गया है 
छह दर्शन
वैशेषिक , न्याय , सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं उत्तर मीसांसा
सात सोमयज्ञ
अग्रिष्टोम, उक्थ्य , षोडाक्ष , वाजपेय , अतिरात्र , आप्तोर्याम
सात पाकयज्ञ
अष्टका ,पार्वण-स्थालीपाक, श्राद्ध , श्रावणी , आग्रहायणी, चैत्री , आश्वयुजी
सात हविर्यज्ञ
अग्न्याधान , अग्निहोत्र , दर्शपूर्णमास , अग्रायण , चातुर्मास्यनिरुढपशुबंध, सौत्रमणी
सप्त ऋषि
विश्वामित्र , जमदग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप
श्राद्ध मे आवश्यक  सात विषयों की शुचिता
कर्ता , द्रव्य , पत्नी , स्थल, मन, मंत्र, ब्राह्मण
अस्पृश्यता न मानने के स्थान
मंदिर, देवयात्रा, विवाह, यज्ञ और अभी प्रकार के उत्सव , संग्राम, बाजार
सात प्रकार के पापियों से संपर्क
यौन , स्रौव, मुख, एकपात्र मे भोजन , एकासन , सहाध्ययन, अध्यापन
न्यास के सात प्रकार
हंसन्यास, प्रणवन्यास , मातृकान्यास , मंत्रन्यास, करन्यास , अंतर्न्यास, पीठन्यास
२७ या २८ नक्षत्रो के सात विभाग
१. ध्रुव नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी , उत्तराषाढा , उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी | २. मृदु नक्षत्र - अनुराधा, रेवती, चित्र, मृगशिरा | ३. क्षिप्र नक्षत्र - हस्त , अश्विनी , पुष्य , अभिजित | ४. उग्र नक्षत्र - पूर्वाषाढा , पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा | ५. चर नक्षत्र - पुनर्वसु , धनिष्ठा , स्वाति , श्रवण , शतभिषा |६. क्रूर नक्षत्र - मूल, ज्येष्ठा , आर्द्रा , आश्लेषा |७. साधारण नक्षत्र- कृतिका , विशाखा
सप्त मोक्षपुरी
अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची,अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका
सात मोक्ष दायिनि नदियाँ
गंगा, यमुना, सिंधु, कावेरी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, सरस्वती
प्रमुख आठ यज्ञकृत्य
ऋत्विगवरण , शाखाहरण , बहिर्राहरण , इध्माहरण , सायंदोह , निर्वाप , पत्रीसन्न्हन, बहिरास्तरण
आठ गोत्र संस्थापक
विश्वामित्र , जमदग्नि , भारद्वाज, गौतम, अत्रि , वसिष्ठ , कश्यप , अगस्त्यप्रत्येक गोत्र के साथ १,,३ या ५ ऋषि होते है जो उस गोत्र के प्रवर कहलाते है |धर्मशास्त्र के अनुसार सगोत्र एवं सप्रवर विवाह वर्जित माना जाता है
आठ प्रकार के विवाह
ब्रह्म , प्रजापत्य ,   आर्ष , दैवगन्धर्व , आसुर, राक्षस , पैशाच
सन्यास लेने के पूर्व करने योग्य आठ श्राद्ध
आर्ष , दैव, दिव्य , मानुष , भौतिक, पैतृकमातृ, अत्मश्राद्ध
आठ दान के पात्र
माता- पिता , गुरु , मित्र, चरित्रवान व्यक्ति , उपकारी , दीन, अनाथ एवं गुणसंपन्न व्यक्ति
व्रतो के आठ प्रकार
तिथिव्रत , वार व्रत , नक्षत्र व्रत , योग व्रत, संक्रांति व्रत, ऋतू व्रत , संवत्सर व्रत
दुष्ट अन्न के आठ प्रकार
जाति दुष्ट , क्रियादुष्ट , कालदुष्ट, संसर्ग्ग्दुष्ट, सल्लेखा , रस दुष्ट , परिग्रहण दुष्ट , भाव दुष्ट
भुमिशुद्धि के आठ साधन
सम्मार्जन , प्रोक्षण , उपलेपन, अवस्तरण, उल्लेखन , गोकरण , दहन, पर्जन्यवर्षण
तांत्रिक पूजा मे उपयुक्त आठ मण्डल
सर्वतोभद्र मण्डल, चतुर्लिंगतोभद्र, प्रासाद , वास्तु , गृहवास्तु, ग्रहदेवता मण्डल , हरिहर  मण्डल, एकालिंगतोभेद
आठ योग
यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधि
अष्ट लक्ष्मी
आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी
तांत्रिक क्रिया मे आवश्यक नौ मुद्रायें
आवाहनी, स्थापिनी , संनिधापिनी , सन्निरोधिनी, सम्मुखीकरणी, सकलीकृति , अवगुन्ठनी, धेनुमुद्रा, महामुद्रा 
पितरो की नौ कोटियां
अग्रिष्दात्त, बहिर्षद, आन्यव, सोमप, रश्मिप, उपहूत , आयुन्तु , श्राद्धभुज, नान्दीमुख
नव दुर्गा
शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
पाप के नौ प्रकार
अतिपतक, महापातक, अनुपतक, उपपातक , जातिभ्रंशकर , संकरीकरण , अपात्रीकरण, मलावह, प्रकीर्णक
दस यज्ञपात्र  या याज्ञायुध
रुप्य, कपाल, अग्निहोत्रवहणी, शूर्प , कृष्णाजिन , शम्भा , उलूखल , मुसल, दृषद और उपला, | इनके अतिरिक्त सुरु , जुहू , उपभृत, ध्रुवा, इडा पात्र, पिष्टोद्वपनी इत्यादि अन्य पात्रो का भी यज्ञकर्म मे उपयोग होता है
दस प्रकार के ब्राह्मण
पांच गौड़ और पांच द्रविड़ अथवा देव ब्राह्मण , मुनि ब्राह्मण, द्विज ब्राह्मण , क्षत्र ब्राह्मण , वैश्य ब्राह्मण , शूद्र ब्राह्मण , निषाद ब्राह्मण, पशु ब्राह्मण , म्लेच्छ ब्राह्मणचांडाल ब्राह्मण
अद्वैती सन्यासियों की दस शाखाएं
तीर्थ, आश्रम, वन , अरण्य, गिरी , पर्वत, सागर, सरस्वती , भारतीपुरी
दस महादान
सुवर्ण, अश्व , तिल, हाथी, दासी , रथ, भूमि, घर, दुल्हन , कपिला गाय, सोना य चांदी का दान दाता के बराबर तोलकर ब्राह्मण को  दिया जाता है तब उसे तुलापुरुष  नमक महादान कहते है
पाप मुक्ति के दस उपाय
१. आत्मापराध स्वीकार, २. मंत्रजाप ३. ताप  ४. होम  ५. उपवास ६. दान ७.प्राणायाम  ८. तीर्थयात्रा ९.प्रायश्चित  १०. कठोर पालन
अशुद्ध को शुद्ध करने वाली दस वस्तुएं
जल, मिटटी , इंगुद , अरिष्ट (रीठा), बेल का फल , चावल, सरसों का उबटन, क्षार , गोमूत्र , गोबर
दस दिशाएं
पूर्व, पश्चिम , उत्तर , दक्षिण , इशान , नैॠत्य , वायव्य आग्नेय , आकाश एवं पाताल
विवाह  योग्य ११ नक्षत्र
रोहिणी, मृगशीर्ष, मघा , उत्तर-फाल्गुनी , उत्तराषाढा , उत्तराभाद्रपदा , हस्त , स्वाति , मूल, अनुराधा, रेवती
बारह मास
चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद ,अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष, पौष , माघ , फाल्गुन
बारह राशि
मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह, कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ , एवं मीन 
बारह  देवतीर्थ
विंध्य की दक्षिण दिशा मे छः नदियाँ - गोदावरी, भीमरथी, तुंगभद्रा, वेणिका, तापी , पयोष्णी
विंध्य की उत्तर दिशा मे छः नदियाँ - भागीरथी, यमुना, सरस्वती, विशोका , वितस्ता (चन्द्र-सूर्य ग्रहण काल मे इन देवतीर्थो मे स्नान श्रेयस्कर माना जाता है |


बारह ज्योतिर्लिंग
सौराष्ट्र मे सोमनाथ, (आंध्र कूर्नुल जिले मे श्री शैल पर) मल्लिकार्जुनमध्य प्रदेश (उज्जैनी ) मे महाकालेश्वर, मध्य प्रदेश (नर्मदा तट पर ओंकार क्षेत्र मे ) ओंकारेश्वर, हिमालय क्षेत्र मे केदारनाथ, महाराष्ट्र (पुणे के पास ) भीमाशंकरकाशी (वाराणसी ) मे  विश्वनाथ, महाराष्ट्र (नासिक के पास  ) त्रयंबकेश्वर, चिताभूमि मे (बिहार)  वैद्यनाथ, दारुकावन  नागेश्वर, सेतुबंध (तमिलनाडु) मे  रामेश्वर और महाराष्ट्र मे औरंगाबाद के पास घृष्णेश्वर!
चौदह  विधाएं
४ वेद, ६ वेदांग, पुराण, न्याय , मीमांसा एवं धर्मशास्त्र | इनमे आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अर्थशास्त्र मिलाकर १८ विधाएँ मणि जाती है, जिनका अध्ययन  ब्रह्मचर्याश्रम मे आवश्यक माना जाता है | आयुर्वेदादि  चार उपवेद छोडकर अन्य १४ धर्मज्ञान के प्रमाण माने जाते है
पंद्रह तिथियाँ
प्रतिपदा , द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी ,पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी ,द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावस्या
सोमयाग  के १६ पुरोहित
होता , मैत्रावारुण, आच्छावाक, ग्रावस्तुत, अध्वर्यु , प्रतिपस्याता , नेष्टा , उन्नेता, ब्रह्मा , ब्रह्मणाच्छंसी , अगिन्ध्र , पोता , उद्गाता , प्रस्तोता , प्रतिहर्ता , सुब्रहण्य
सोलह संस्कार
अन्तर्गर्भ/ दोष मार्जन: गर्भाधान संस्कार · पुंसवन संस्कार · सीमन्तोन्नयन संस्कार
बहिर्गर्भ/ जन्म पश्चात/ गुणाधान: जातकर्म संस्कार · नामकरण संस्कार · निष्क्रमण संस्कार · अन्नप्राशन संस्कार . मुंडन.चू्ड़ाकर्म · विद्यारंभ संस्कार . कर्णवेधन संस्कार · उपनयन संस्कार · वेदारंभ संस्कार · केशांत संस्कार
अन्य: समावर्तन संस्कार · विवाह संस्कार · अन्त्येष्टि संस्कार
१८  प्रकार की शान्तियाँ
अभ शांति , सौम्य , वैष्णवी , रौद्री , ब्राह्मी , वायवी , वारुणी , प्राजापत्य, त्वाष्ट्रीकौमारी, आग्नेय, गांधर्वी , आंगिरसीनैऋती , याम्या , कौबेरी , पर्थिवी एवं एंद्री इन्शातियों के अतिरिक्त विनायक शांती , नवग्रह, उग्ररथ (षट्यब्दिपूर्तिनिमित्त ), भैमरथी, उदकशांती, अमृतामाहाशांती, वास्तुशांति , पुष्याभिषेक शांति इत्यादि शंतियाँ धर्मशास्त्र मे कही गयी है !
चैत्र से लेकर बारह मासों की एकादशियों के क्रमशः नाम
कामदा, वरूथनी | मोहिनी , अपरा | निर्जला , योगिनी | शयनी, कामदा | पुत्रदा , अजा | परिवर्तिनी , इंदिरा | पापांकुशा , रमा | प्रबोधिनी, उत्पति | मोक्षदा, सफला |पुत्रदा, षटतिला  | जया, विजया | आमर्द्की (आमलकी), पापमोचनी | इनमे शयनी (आषाढ़ी ) और प्रबोधिनी (कार्तिकी ) एकादशी का उपोषणादि व्रत सर्वत्र मनाया जाता है |
भगवान  विष्णु के २४ अवतार
१-सनकादी महर्षियों का अवतार, २-वाराह अवतार , ३-नारदावतार, ४-नर नारायण अवतार, ५-कपिल अवतार, ६-दत्तात्रेय अवतार, ७-यज्ञ अवतार, 8- ऋषभ अवतार, ९-प्रथु अवतार, १०-मत्स्य अवतार, ११- कूर्म अवतार, १२-धन्वन्तरी  अवतार, १३-मोहिनी  अवतार, १४- नृसिंह अवतार, १५-वामन अवतार, १६-परशुराम अवतार, १७-व्यास अवतार, १८-राम अवतार, १९-बलराम  अवतार, २०-श्री कृष्ण अवतार, २१-हयग्रीव अवतार, २२-हंस अवतार, २३-बुद्ध अवतार और २४-कल्कि
वैष्णवों  के देवता
अग्नि , सोम ,अग्निष्टोम विश्वदेव , धनवंतरी , कुहू , अनुमति , प्रजापति, द्वावापपृथिवी , स्विष्टकृत(अग्नि ) वासुदेव , संकर्षण , अनिरुद्ध , पुरुष, सत्य , अच्युत , मित्र, वरुण, इंद्र , इन्द्राग्री, वास्तोश्मति इ. |
देवपूजा के उपचार
जल , आसान, आचमन , पञ्चामृत , अनुलेप ( गंध), आभूषण, दीप, कर्पूर आरती , नैवेद्य , ताम्बूल , नमस्कार, प्रदक्षिणा इ.
स्मृतियाँ
मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य ,उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष ,शातातप , वसिष्ठ !
विवाह के धार्मिक कृत्य
वधुवर गुणपरीक्षा  , वरप्रेक्षण, वाग्दान , मण्डपवरण, नान्दीश्राद्ध , पुण्याहवाचन, वधूगृहगमन , मधुपर्क, स्नापन, परिधायन , समंजन , प्रतिसरबंध, वधुवर-निष्क्रमण , परस्पर-समीक्षण , कन्यादान , अग्निस्थापना एवं होम, पाणिग्रहण , लाजाहोम, अग्निपरिणयन, अश्मारोहण, सप्तपदी , मूर्धाभिषेक, सुर्योदीक्षण , हृदयस्पर्श , प्रेक्षकानुमंत्रण , दक्षिणादान, गृहप्रवेश , ध्रवारुन्धती दर्शन, हरगौरी पूजन, आर्द्राक्षतारोपण , मंगलसूत्र बंधन , देवकोत्थापन, मंडपोंद्द्वासन | इन विविध कृत्यों मे मधुपर्क, होम, अग्निप्रदक्षिणा , पाणिग्रहण, लाजाहोम, आर्द्राक्षतारोपणविविध महत्वपूर्ण माने जाते है |
व्रतो  मे आवश्यक कुछ कर्तव्य
स्नान , संध्यावंदन , होम, देव्तापूजन , उपवास, ब्राह्मण भोजन, कुमारिका-विवाहिता का भोजन, दरिद्र भोजन , दान, गोप्रदान, ब्रह्मचर्य, भुमिशायण, हविष्यान्न्भक्षण |
धर्मशास्त्र मे निर्दिष्ट महत्वपूर्ण व्रत उत्सव
नागपंचमी ,वा मनसा पूजा, रक्षाबंधन, कृष्ण बंधन, कृष्णजन्माष्टमी , हरतालिका, गणेश चतुर्थी, ऋषिपंचमी , अनंतचतुर्दशी नवरात्रि(दुर्गोत्सव ), विजयादशमी , दीपावली , यमद्वितीया, मकर संक्रांति , वासन पंचमी, महाशिवरात्रि, होलिका एवं ग्रहण, अक्षय तृतीया , व्यासपूजा तथा रामनवमी इत्यादि |
भूतबलि के अधिकारी
कुत्ता, चंडाल, जातिच्युत , महारोगी, कौवे , कीड़े , मकोड़े इत्यादि | भोजन के पूर्व इनको अन्न देना चाहिए |
श्राद्ध के विविध प्रकार
नित्य , नैमित्तिक, पार्णव , एकोद्दिष्ट , प्रतिसावत्सरिक, मासिक, आमश्रद्ध (जिसमे बिना पका हुआअन्न दिया जाता है) , हेमश्राद्ध ( भोजनाभाव मे , प्रवास मे, पुत्रजन्म मे, या  ग्रहण मे  हेमश्राद्ध किया जाता है , स्त्री तथा शूद्र हेम्श्रद्ध कर सकते है )| ध्रुवश्राद्ध, आभ्युदयिक, नान्दीश्राद्ध , महालयश्राद्ध, आश्विन कृष्णपक्ष मे किये जाते है |मातामह श्राद्ध ( दौहित्र प्रतिप्रदा श्राद्ध), अविधवा नवममीश्राद्ध (कृष्णपक्ष की  नवमी को होता है ), जीवश्राद्ध , संघात श्राद्ध (किसी दुर्घटना मे अनेको की एक साथ मृत्यु  होने पर किया जाता है ), वृद्धि श्राद्ध, सपिण्डन, गोष्ठश्रद्धि , शुद्धिश्राद्ध , कर्मांग , दैविक, यात्राश्रद्ध , पुष्टिश्राद्ध , षण्णवती श्राद्ध  आदि | एक वर्ष मे किये जाने वाले लगभग ९६ श्राद्धो का वर्णन मिलता है |
श्राद्ध मे निमंत्रण योग्य पंक्तिपावन ब्राह्मण के गुण:
त्रिमधु (मधु शब्द युक्त तीन वैदिक मंत्रो का पाठक ) , त्रिसुपर्ण का पाठक, त्रिणाचिकेत , चतुर्मेध (अश्वमेध, पुरूषमेध , सर्वमेध, पितृमेध ) के मंत्रो का ज्ञानी , पांच अग्नियों को देने वाला ज्येष्ठसाम का ज्ञानी , नित्य वेदाध्यायी , एवं वैदिक का पुत्र |
दान योग्य पदार्थ
(उत्तम): भोजन, गाय, भूमि , सोना , अश्व , हांथी | (मध्यम ): विद्या , गृह, उपकरण, औषध | (निकृष्ट ): जूते, हिंडोला, गाड़ी, छाता, बर्तन , आसन, दीपक, फल, जीर्ण पदार्थ|
उपपातक (सामान्य पापकर्म)
गोवध, ऋणादान (ऋण को न चुकाना ), परिवेदन ( बड़े भाई से पहले विवाह करना), शुल्क लेकर वेदाध्यापन , स्त्रीहत्या , निन्द्यम जीविका, नास्तिकता, व्रत त्याग , माता-पिता का निष्कासन , केवल अपने लिए भोजन बनाना , स्त्रीधन पर उपजीविका , नास्तिको के ग्रथो का अध्ययन इत्यादि (ऐसे उपपातक ५० तक बताये गए है )|
भूमि की अशुद्धता के कारण
प्रसूति, मरण, प्रेत दहन , विष्टा, कुत्ते, गधे तथा सूअर का स्पर्श ,कोयला, भूसी, अस्थि राख का संचय ( इन कारणों से भूमि की शुद्धि संमार्जनादि से करना आवश्यक है )|
मंगल वृक्ष
अश्वत्थ , औदुम्बर, प्लक्ष, आम्र , न्यग्रोध , पलाश , शमी , बिल्व, आमलक, नीम आदि |
तीर्थ यात्रा मे गंगा तट पर त्यागने योग्य कर्म
शौच , आचमन, केशश्रंगार, अघमर्षण , सूक्त पाठ, देह्मर्दन, क्रीडा, कौतुक, दानग्रहण, सम्भोग, अन्य तीर्थो की प्रशंसा, वस्त्रदान, ताडन , तीर्थ जल को तैरकर पार करना |
पवित्र स्थान
सरोवर, तीर्थस्थल , ऋषि निवास , गोशाला , देवमंदिर , गंगा , हिमालय , समुद्र, और समुद्र मे मिलने वाली नदिया , पर्वत (श्रीमदभागवत  मे पुनीत पर्वतो के २७ नाम दिए है ; ५-१९-१६) |


2 comments:

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