प्रायः मैंने लोगो को भारतीय जीवन मूल्य (Values) के बारे मे बोलते हुए सुना है | हम अक्सर अपने आप को हमारे जीवन मूल्यों (Values) के आधार पर पाश्चात्य सभ्यता से अलग और उच्च कोटि का मानते है| आपने प्रायः लोगो को यह कहते हुए सुना होगा कि जो हमारे पास वेल्यूज़ है वो किसी और देश जैसे अमेरिका या यूरोप मे किसी के पास नहीं है | परन्तु जब भी मैंने हमारी इन तथाकथित वेल्युज को जानना चाहा या यूँ कहें कि ये वेल्यूज़ कौन - कौन सी है, तो उत्तर मे मुझे २ - ४ ही सुनने को मिलती है | जैसे- हमारे यहाँ परिवार व्यवस्था है , अतिथि का सम्मान, बड़ो का आदर आदि |
मुझे लगा कि क्या बस इन कुछ जीवन मूल्यों के आधार पर ही हम और देशो से अलग और महान है?
संयोग से इस प्रश्न का उत्तर मुझे डॉक्टर धर्मपाल सैनी जी के एक लेख मे मिला |
आज मैं उस लेख के आधार पर आप को भारतीय जीवन मूल्यों से परिचित कराने का प्रयास कर रहा हूँ|
मानव को सच्चे अर्थो मे मानव बनाने का श्रेय उन उदात्त जीवन मूल्यों को है , जिनके माध्यम से वह अपना सात्विक जीवन बिता रहा है | वस्तुतः किसी भी राष्ट्र का मूल्यांकन वहाँ के जन समाज के आचरणगत मूल्यों के आधार पर ही होता है | प्रत्येक राष्ट्र की एक परंपरागत संस्कृति होती है , जिसका सृजन उन मूल्यों के आधार पर होता है जिन्हें वहाँ के महापुरुषों ने अपने जीवन मे अपनाया | वस्तुतः उन मूल्यों के और उनके माध्यम से ही उनका चरित्र एवं व्यक्तित्व गौरवमय बनकर स्वर्णाक्षरो मे अंकित हुआ |
किसी भी देश की भौतिक प्रगति का भी महत्व है लेकिन भौतिक प्रगति को उस देश का शरीर कहा जा सकता है , जबकि उसमे प्राण तत्व का संचार करने वाले जीवन - मूल्य ही है | इससे किसी भी व्यक्ति , जाति , समाज , देश व राष्ट्र के जीवन- मूल्यों का महत्व स्पष्ट हो जाता है |
किसी भी समाज की धारणाएँ, मान्यतायें, आदर्श और उच्चतर आकांक्षाएँ ही वहाँ के जीवन मूल्यों का सृजन करती है और यह देश , काल एवं परिस्थिति सापेक्ष होती है | यद्यपि इन जीवन मूल्यों की आधार भूमि मे प्रायः परिवर्तन नहीं होता , परन्तु उनके व्यवहृत रूप मे परिस्थिति-जन्य परिवर्तन होता रहता है |
भारतीय जीवन मे नारी के शील की रक्षा का सदा से विशेष महत्व रहा है | मध्य युग मे सशक्त विदेशी आक्रमणकारियों की ज्यादतियों से जब यहाँ के अशक्त राजा और जन- समाज उनकी रक्षा न कर सके, तो न केवल सामूहिक जौहर को प्रश्रय मिला अपितु संभवतः सती- प्रथा का प्रचलन भी तभी हुआ | भारतीय नारी ने विदेशी पाशविक - शक्ति का शिकार होने की अपेक्षा प्राणों की बलि दे देने को श्रेयस्कर समझा | उन परिस्थितियों मे यही यहाँ का जीवन - मूल्य था , लेकिन बदलते परिवेश मे आज इसकी आवश्यकता नहीं , अतः वही सती प्रथा जो उस युग मे गौरव का कारण बनी थी , आज निंदनीय और अवांछनीय हो गयी | मूलाधार वही रहा नारी के शील की रक्षा | आज भी मदोन्मत मानव की राक्षसी वृत्तियों का शिकार होने से बचने के लिए प्राणों की आहुति देने वाली नारियों को यहाँ सम्मान कि दृष्टी से देखा जाता है - यह क्या कम है ? जीवन के उच्चतर मूल्य ही वह आदर्श बने रहते है , जिनके लिए मानव न केवल अनंत कष्ट सहकर जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार हो जाता है , अपितु समय आने पर प्राण तक न्योछावर कर देता है लेकिन अपने मूल्य नहीं छोड़ता | पितृ भक्त राम सहर्ष राज्य त्यागकर १४ वर्षों के लिए वन को चले गए और " प्राण जाहि पर वाचन ना जाई" का पालन करते हुए दशरथ पुत्र वियोग मे स्वर्ग सिधार गए, पर अपने वचन का पालन करने मे नहीं चूके | महाराणा प्रताप वन- वन मारे फिरते रहे, बच्चे को घांस की रोटी तक खिलाई लेकिन न स्वाभिमान का त्याग किया और न ही पराधीनता स्वीकार की | नौ वर्ष के गुरु गोविन्द सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए पिता तेग बहादुर को ही श्रेष्ठ मानव बताते हुए धर्म की बलिदेवी पर चढने के लिए प्रेरित किया | इतना ही नहीं " स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" (धर्म परिवर्तन करने से अपने धर्म मे मर जाना अच्छा है -गीता) इस जीवन मूल्य से अभिसिंचित होने के कारण उनके सात और नौ वर्ष के पुत्रो ने भी अपने को दीवार मे जिन्दा ही चिनवा लेना अच्छा समझा लेकिन धर्म परिवर्तन से मनाही कर दी | स्वतः गुरु गोविन्द सिंह दूसरे दोनों पुत्रो के युद्ध मे शहीद हो जाने के बाद भी जीवन भर अत्याचारी औरंगजेब और उसके सेनापतियों से जूझते रहे लेकिन धर्म , जाति और देश की पराजय स्वीकार नहीं की | भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कौन भुला सकता है , जिन्हीने देश की स्वतंत्रता के लिए हँसते - हँसते फांसी के तख्ते चूम लिए और उफ़ तक न की | ये है इन देशभक्तों के मूल्य - स्वाभिमान , स्वतंत्रता - प्रेम , धर्म- रक्षा और देश - प्रेम जिन्होंने इन मूल्यों के लिए बड़े से बड़ा त्याग किया और भारत ही क्या , विश्व के इतिहास मे अमर हो गए |
मुझे लगा कि क्या बस इन कुछ जीवन मूल्यों के आधार पर ही हम और देशो से अलग और महान है?
संयोग से इस प्रश्न का उत्तर मुझे डॉक्टर धर्मपाल सैनी जी के एक लेख मे मिला |
आज मैं उस लेख के आधार पर आप को भारतीय जीवन मूल्यों से परिचित कराने का प्रयास कर रहा हूँ|
मानव को सच्चे अर्थो मे मानव बनाने का श्रेय उन उदात्त जीवन मूल्यों को है , जिनके माध्यम से वह अपना सात्विक जीवन बिता रहा है | वस्तुतः किसी भी राष्ट्र का मूल्यांकन वहाँ के जन समाज के आचरणगत मूल्यों के आधार पर ही होता है | प्रत्येक राष्ट्र की एक परंपरागत संस्कृति होती है , जिसका सृजन उन मूल्यों के आधार पर होता है जिन्हें वहाँ के महापुरुषों ने अपने जीवन मे अपनाया | वस्तुतः उन मूल्यों के और उनके माध्यम से ही उनका चरित्र एवं व्यक्तित्व गौरवमय बनकर स्वर्णाक्षरो मे अंकित हुआ |
किसी भी देश की भौतिक प्रगति का भी महत्व है लेकिन भौतिक प्रगति को उस देश का शरीर कहा जा सकता है , जबकि उसमे प्राण तत्व का संचार करने वाले जीवन - मूल्य ही है | इससे किसी भी व्यक्ति , जाति , समाज , देश व राष्ट्र के जीवन- मूल्यों का महत्व स्पष्ट हो जाता है |
किसी भी समाज की धारणाएँ, मान्यतायें, आदर्श और उच्चतर आकांक्षाएँ ही वहाँ के जीवन मूल्यों का सृजन करती है और यह देश , काल एवं परिस्थिति सापेक्ष होती है | यद्यपि इन जीवन मूल्यों की आधार भूमि मे प्रायः परिवर्तन नहीं होता , परन्तु उनके व्यवहृत रूप मे परिस्थिति-जन्य परिवर्तन होता रहता है |
भारतीय जीवन मे नारी के शील की रक्षा का सदा से विशेष महत्व रहा है | मध्य युग मे सशक्त विदेशी आक्रमणकारियों की ज्यादतियों से जब यहाँ के अशक्त राजा और जन- समाज उनकी रक्षा न कर सके, तो न केवल सामूहिक जौहर को प्रश्रय मिला अपितु संभवतः सती- प्रथा का प्रचलन भी तभी हुआ | भारतीय नारी ने विदेशी पाशविक - शक्ति का शिकार होने की अपेक्षा प्राणों की बलि दे देने को श्रेयस्कर समझा | उन परिस्थितियों मे यही यहाँ का जीवन - मूल्य था , लेकिन बदलते परिवेश मे आज इसकी आवश्यकता नहीं , अतः वही सती प्रथा जो उस युग मे गौरव का कारण बनी थी , आज निंदनीय और अवांछनीय हो गयी | मूलाधार वही रहा नारी के शील की रक्षा | आज भी मदोन्मत मानव की राक्षसी वृत्तियों का शिकार होने से बचने के लिए प्राणों की आहुति देने वाली नारियों को यहाँ सम्मान कि दृष्टी से देखा जाता है - यह क्या कम है ? जीवन के उच्चतर मूल्य ही वह आदर्श बने रहते है , जिनके लिए मानव न केवल अनंत कष्ट सहकर जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार हो जाता है , अपितु समय आने पर प्राण तक न्योछावर कर देता है लेकिन अपने मूल्य नहीं छोड़ता | पितृ भक्त राम सहर्ष राज्य त्यागकर १४ वर्षों के लिए वन को चले गए और " प्राण जाहि पर वाचन ना जाई" का पालन करते हुए दशरथ पुत्र वियोग मे स्वर्ग सिधार गए, पर अपने वचन का पालन करने मे नहीं चूके | महाराणा प्रताप वन- वन मारे फिरते रहे, बच्चे को घांस की रोटी तक खिलाई लेकिन न स्वाभिमान का त्याग किया और न ही पराधीनता स्वीकार की | नौ वर्ष के गुरु गोविन्द सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए पिता तेग बहादुर को ही श्रेष्ठ मानव बताते हुए धर्म की बलिदेवी पर चढने के लिए प्रेरित किया | इतना ही नहीं " स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" (धर्म परिवर्तन करने से अपने धर्म मे मर जाना अच्छा है -गीता) इस जीवन मूल्य से अभिसिंचित होने के कारण उनके सात और नौ वर्ष के पुत्रो ने भी अपने को दीवार मे जिन्दा ही चिनवा लेना अच्छा समझा लेकिन धर्म परिवर्तन से मनाही कर दी | स्वतः गुरु गोविन्द सिंह दूसरे दोनों पुत्रो के युद्ध मे शहीद हो जाने के बाद भी जीवन भर अत्याचारी औरंगजेब और उसके सेनापतियों से जूझते रहे लेकिन धर्म , जाति और देश की पराजय स्वीकार नहीं की | भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कौन भुला सकता है , जिन्हीने देश की स्वतंत्रता के लिए हँसते - हँसते फांसी के तख्ते चूम लिए और उफ़ तक न की | ये है इन देशभक्तों के मूल्य - स्वाभिमान , स्वतंत्रता - प्रेम , धर्म- रक्षा और देश - प्रेम जिन्होंने इन मूल्यों के लिए बड़े से बड़ा त्याग किया और भारत ही क्या , विश्व के इतिहास मे अमर हो गए |
जीवन - मूल्यों का आधार
भारतीय जीवन - मूल्यों को जानने के लिए उनके आधार को समझना आवश्यक है | मानव सभ्यता के विकास के साथ- साथ मनुष्य ने मात्र पशुवत जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा कुछ और अच्छी तरह जीवन जीने की कला सीखनी चाही होगी | समूह मे जीवन व्यतीत की प्रेरणा संभवतः आत्मरक्षा के सिद्धांत से मिली हो | यह आत्म-रक्षा ही समूह की रक्षा मे परिणत हो गयी | इसी से मानव को अमूल्य जीवन का महत्व समझ मे आया | मानव मे "जीवन की आस्था" उत्पन्न हो गयी और वह अपने समूह अ समाज के सभी मनुष्यों के जीवन के महत्व को अनुभव करने लगा | यही जीवन- मूल्यों कि प्रति उसके विश्वास का आरंभ था | वस्तुतः इन मूल्यों का आधार श्रुति , स्मृति , पुराणों मे अन्तर्निहित सत्य एवं महापुरुषों का अनुभूत सत्य एवं सदाचरण ही है, जिसे हम इस रूप मे प्रस्तुत कर रहे है | बौद्धिक प्राणी होने के कारण वह प्रत्येक कार्य के औचित्य -अनौचित्य पर विचार करने लगा - पहले वैयक्तिक दृष्टी से , पुनः सामाजिक दृष्टी से और अंततः मानवीय दृष्टी से | धीरे - धीरे उसने अपने अंतर्मन मे स्वीकार कर लिया कि इस औचित्य-अनौचित्य का आधार उसका बौद्धिक विवेक है , चाहे वह किसी भी क्षेत्र मे क्यों न हो | वैयक्तिक क्षेत्र मे व्यक्ति अपने- आप ही दोनों पक्षों की ओर से तर्क-वितर्क कर किसी निर्णय पर पहुचता है, जबकि सामाजिक क्षेत्र मे सभी व्यक्ति दो या अधिक पक्षधर बनकर अपना- अपना पक्ष स्पष्ट और सशक्त करने का प्रयास करते है | मानव ने इस विवेक शक्ति के महत्व को भी स्वीकार किया और जीवन मूल्यों के आधार- स्वरुप इसे अपनाया |
जब उसका एक ही मूल्य अन्यान्य देश, काल एवं परिस्थितियों मे उपयुक्त न प्रयुक्त हुआ , तो उसने इन पर भी विचार करना आवश्यक समझा और इस निर्णय पर पहुचा कि इन परिवर्तनो के साथ जीवन - मूल्यों मे भी परिवर्तन आवश्यक है , अतः समग्र परिवेश को भी इसका आधार स्वीकार कर लेना चाहिये | यदि ये जीवन- मूल्य इस व्यापक जन समाज के जन कल्याण के लिए न हो , तो उन्हें भी नहीं स्वीकार किया जा सकता, अतः जीवन - मूल्यों का एक महत्वपूर्ण आधार बना लोक-कल्याण की चेतना |
यह सब तो ठीक है पर एकाकी मानव का क्या हो? क्या वह अपने सभी मूल्यों का लोक कल्याण के लिए त्याग कर दे अथवा वहाँ भी विवेक एवं अन्य आधारो का आश्रय लेकर अपने "आतंरिक - उन्नयन " पर विचार करे ?
जब उसका एक ही मूल्य अन्यान्य देश, काल एवं परिस्थितियों मे उपयुक्त न प्रयुक्त हुआ , तो उसने इन पर भी विचार करना आवश्यक समझा और इस निर्णय पर पहुचा कि इन परिवर्तनो के साथ जीवन - मूल्यों मे भी परिवर्तन आवश्यक है , अतः समग्र परिवेश को भी इसका आधार स्वीकार कर लेना चाहिये | यदि ये जीवन- मूल्य इस व्यापक जन समाज के जन कल्याण के लिए न हो , तो उन्हें भी नहीं स्वीकार किया जा सकता, अतः जीवन - मूल्यों का एक महत्वपूर्ण आधार बना लोक-कल्याण की चेतना |
यह सब तो ठीक है पर एकाकी मानव का क्या हो? क्या वह अपने सभी मूल्यों का लोक कल्याण के लिए त्याग कर दे अथवा वहाँ भी विवेक एवं अन्य आधारो का आश्रय लेकर अपने "आतंरिक - उन्नयन " पर विचार करे ?
स्पष्ट है कि जो मूल्य व्यक्ति का "आतंरिक - उन्नयन " नहीं करते , वे भी जीवन-मूल्य नहीं हो सकते |
संक्षेपतः हम कह सकते है कि भारतीय जीवन- मूल्यों के निम्न आधार हो सकते है -
- जीवन के प्रति आस्था और लगाव
- विवेकशील चिंतन
- परिवेश-बोध
- लोक कल्याण की चेतना और
- वैयक्तिक उदात्तीकरण अथवा आतंरिक - उन्नयन
- जिसका ध्येय व्यापक लोक -कल्याण हो
- जिससे व्यक्ति का उदात्तीकरण हो
मूल्यों का वर्गीकरण
जीवन-मूल्यों का व्यापक ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनका वर्गीकरण भी किया जा सकता है | जैसे:-
शारीरिक मूल्य मे स्वस्थ देह की बात कही जा सकती है , जिसके अनिवार्य तत्व हो सकते है - नीरोग, सशक्त , सहनशील, सब अंगों का अनुपातिक विकास , आयु के अनुसार आनन् पर तेज , सौंदर्य और स्फूर्ति |
इसी प्रकार वैयक्तिक मूल्यों में आत्मबल, आत्मविश्वास , स्वाभिमान, आत्म-निर्भरता , निर्भीकता , संतोष, धैर्य , संकल्प, सहृदयता आदि को लिया जा सकता है |
आर्थिक मूल्यों में उचित साधनों से धन का उपार्जन , सत्य मार्ग से ही उसका व्यय, मितव्ययता , उपयुक्त दान तथा अनावश्यक संग्रह न करना आदि | हमारे यहाँ कहा भी गया है -"अर्थस्य तिस्र: गतयः दानं भोगो नाशश्च " ( धन की तीन गतियाँ होती है उपभोग कर लो , दान दे दो अथवा नष्ट हो जायेगा )|
इसी प्रकार वैयक्तिक मूल्यों में आत्मबल, आत्मविश्वास , स्वाभिमान, आत्म-निर्भरता , निर्भीकता , संतोष, धैर्य , संकल्प, सहृदयता आदि को लिया जा सकता है |
आर्थिक मूल्यों में उचित साधनों से धन का उपार्जन , सत्य मार्ग से ही उसका व्यय, मितव्ययता , उपयुक्त दान तथा अनावश्यक संग्रह न करना आदि | हमारे यहाँ कहा भी गया है -"अर्थस्य तिस्र: गतयः दानं भोगो नाशश्च " ( धन की तीन गतियाँ होती है उपभोग कर लो , दान दे दो अथवा नष्ट हो जायेगा )|
नैतिक जीवन - मूल्यों में कर्तव्य पालन , ईमानदारी , त्याग , बलिदान, परोपकार , सेवा, सदाचार , शिष्ट व्यवहार , सत्यनिष्ठा , व्यवस्था के प्रति आदर आदि को लिया ज सकता है |
सामाजिक मूल्यों में सद्भावना , सहानुभूति सहयोग, मानवीयता आदि को रखा जा सकता है |
राजनीतिक मूल्यों में राष्ट्रप्रेम , स्वतंत्रता, अनुशासन , विजयोल्लास आदि का महत्व है |
राजनीतिक मूल्यों में राष्ट्रप्रेम , स्वतंत्रता, अनुशासन , विजयोल्लास आदि का महत्व है |
धार्मिक मूल्यों में अव्यक्त सत्ता में विश्वास , भगवद्भक्ति , कीर्तन, गुणगान , प्रार्थना आदि को लिया जा सकता है |
बौद्धिक मूल्यों में महत्वपूर्ण है - कल्पना, जिज्ञासा , विवेचन, विश्लेषण , वैज्ञानिक चिंतन , मनन , रचना -धर्मिता और विवेक |
बौद्धिक मूल्यों में महत्वपूर्ण है - कल्पना, जिज्ञासा , विवेचन, विश्लेषण , वैज्ञानिक चिंतन , मनन , रचना -धर्मिता और विवेक |
सौंदर्य सम्बंधी मूल्यों में संवेदनशीलता , कलाप्रेम , प्रकृति-प्रेम, मानव सौंदर्य प्रेम आदि को स्थान दिया जा सकता है |
आध्यात्मिक मुल्यों में ध्यान-परायणता , शरीर - बोध से अतीत अवस्था को प्राप्त करना , ब्रह्मानुभूति के पथिक बनना व ब्रह्म तत्व की खोज आदि है |
इन्हें अन्यान्न वर्गों में रखने का तात्पर्य यह नहीं कि इनका परस्पर सम्बन्ध नहीं | वस्तुतः यह सभी मूल्य -वटवृक्ष रुपी जीवन-मूल्य की शाखा - प्रशाखाएँ ही हैं |
इन्हें अन्यान्न वर्गों में रखने का तात्पर्य यह नहीं कि इनका परस्पर सम्बन्ध नहीं | वस्तुतः यह सभी मूल्य -वटवृक्ष रुपी जीवन-मूल्य की शाखा - प्रशाखाएँ ही हैं |
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